“गीतिका”
विद्रोह में आप के रोमांस नजर आता है
नैनो में लिपटा कुछ सारांश नजर आता है
आता जाता वक्त दिखाता है वजूद खुद का
उभरे हुए अक्श का अक्षांश नजर आता है॥
ढ़के हुए बर्फ की दुश्वारियाँ अच्छी लगती
छट गई बदरी तो सूर्यान्श नजर आता है॥
कोहरे की कठोर पर्त पिघलती है जब कभी
हकीकत हर्फ विछड़ा प्रियांश नजर आता है॥
दूर से झूमती दिखती है मालती मंजरी
आँगन का हर पौध दिव्यान्श नजर आता है॥
चलो घूम आते हैं समंदर उतर पार कभी
जहाँ इन परिंदे को हर्षान्श नजर आता है॥
गौतम की गजल पतझड़ी बसंत को बुलाएगी
शिशिर शरद मकर में वर्षांश नजर आता है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी