मात्र भार-24, समांत-आ, पदांत- दिया.......
“गीतिका”
तुमने वो चाँद मेरा क्यूकर चुरा दिया
मुंडेर घिर गई बदरी पानी फिरा दिया
हसरत मेरे मन की लपक जान तो लेते
बिगड़े बेअदब तुम क्यूँ परदा गिरा दिया॥
अमावस की रात कैसे हो गई तू काली
दुइज़ की बाँह पकड़ी पूनम थिरा दिया॥
बहुतों को मने देखा मगरूर हुए चलते
उसी रात्री में किनारी किसने जरा दिया॥
उड़ती रही हवा में जो जुल्फ जुल्म ढ़ाकर
उन्हीं गेशुओं में उलझन किसने भरा दिया॥
सुलझा के खुद लाया जो अपने शबाब को
सहला के दर्द उसी का किसने पिरा दिया॥
किससे कहूँ गौतम वही चाँदनी चकोरी
उठ उठा के गिर रही है किसने हरा दिया॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी