समान्त- अली, पदान्त- क्या करें, मापनी- 2122 12 2122 12
“गजल/गीतिका”
भाव भायी रगर मनचली क्या करें
छांव छाई डगर दिलजली क्या करें
खुद से होती कहाँ रूबरू जिंदगी
मोह माया महर, चुलबुली क्या करें॥
मौज महमह खबर, ताजगी भर गई
धूप झरती नजर, खलबली क्या करें॥
ये तमन्ना अजब, उठ चली बांवरी
साथ साथी शहर, दलदली क्या करें॥
देख सूरज लहर, वेदना बढ़ गई
पीर पायल पहर, पगभली क्या करें॥
ऋतु बसंती चलन , प्रीत पलने लगी
छेड़ जाये भ्रमर, तो कली क्या करें॥
हुश्न के पारखी, होते गौतम बहुत
यह नगीना चमक, अंगली क्या करें॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी