कविता कभी अनकही बातों की अदा हैं कविता, कभी गम की दवा हैं कविता।कमी नही कहने वालों की कोई, वरना जमी पर खुद होती कविता। रात की चाँदनी ने सराहा तो दिन की तपन ने निगल लिया। फूलो की खुशबू को भौरों ने सराहा तो माली ने चुन लिया।कविता को जान समझा तो उसने भी झूठा समझ लिया। गर पता होता ये जुर्म मुझको तो खुद
कब तक तुम मुंह मोडोगे, आखिर सच्चाई से ; कब तक मुंह छुपाओगे ,सच्चाई जानने वालों से।झूठे ख्वाबों के ढेर पर बैठ,कब तक खुशफहमी पालेंगे;नकली खुशियों के ये ढेर,यूं ही जल्दी से बिखर जाएंगे।वास्तविकता आधार पर टिकी है,गलतफहमी ना पालों;बनावटी बातों का आधार नहीं, कोई खुशफहमी ना पालों
झूठ और सच का खेल बड़ा ही निराला है। हैरानी होती है आदमी झूठ क्यों बोलता है और सच क्यों नहीं बोलता? आखिर कौन सी ऐसी मजबूरी है जिस से व्यक्ति झूठ बोलता है? आज झूठ को क्यों इतनी प्रतिष्ठा मिली है? सच बोलने से व्यक्ति घबराता -कतराता क्यों है? ऐसे तमाम प्रश्न हैं, जो बताते हैं कि इस के कई कारण हैं। मनोव
झूठ पलता हो पालनों में जहाँ, सच की उनसे क्या उम्मीद करे, खेलते होली जो नफ़रत घुले पानी से, रंगो की वहां क्या उम्मीद करे. दिखता है रंग अपना ही खूबसूरत, उनसे दूसरे रंगों की क्या तारीफ़ करे. मज़हब में भी जो ढूंढते नफ़रत, उनसे इश्क ओ म
सच बोलने से गर डर लगता है यारो, झूठ ऐसा बोलो कि सच सामने आये. सच को बताने की अक्सर ज़रूरत तो नहीं होती, हाकिम ही गर हो झूठा,तो सच बताना ही पडेगा. (आलिम).
मापनी-२१२२ २१२२ २१२२ २१२ समांत- आन पदांत- कर “गज़ल” कुछ सुनाने आ गया हूँ मन मनन अनुमान कर झूठ पर ताली न बजती व्यंग का बहुमान करहो सके तो भाव को अपनी तराजू तौलना शब्द तो हर कलम के हैं सृजन पथ गतिमान कर॥ छू गया हो दर्द मेरा यदि किसी भी देह कोउठ बता देना दवा है जा लगा दिलजान
सुनो ज़रा !जैसे बारिश की बूँदें ढूंढें पता,गरम तपते मैदानों का.जैसे माँ के आने का देता था बता,सुन शोर पायल की आवाज़ों का.वैसे ही गर महसूस कर सको मुझे आज,बग़ल की खाली जगह पर,हर हसने वाली वजह पर,बिन बात हुई किसी जिरह पर.कह दो न,जैसे,तुम ‘झूठमूठ’ का कहते थे,और हम ‘सचमुच’ का मान लेते थे.जैसे,तुम कह देते थे
😂झूठ बोलना …बच्चों के लिए … पाप ,,कुंवारों के लिए …. अनिवार्य ,,प्रेमियों के लिए ….. कला ,,और …शादीशुदा लोगों के लिए … शान्ति से जीने का मार्ग होता है....!!""✋ये है इस हफ्ते का साप्ताहिक ज्ञान।बड़ी मुश्किल से ढूंढ़ कर निकाला है।गीता में लिखना रह गया था।
पाँच सच 1- हमारी सरकारें वादे ज्यादा काम कम करती है 2- लोगो का वोट जातिवादिता तथा धर्म के नाम पर भङका कर वोट लेती है 3- ये अपना अधिकतम समय पिछली सरकार की आलोचना करने मे लगाती है 4-हम गलत जानते हुए भी पार्टी का चश्मा लगाकर उसकी तारीफ करते है 5-आप सभी यह पढ़ने के बाद भी अपनी आदतें नही बदलेंगे