दुनिया के तमाम नवयुवकों पर दृष्टिपात करने से जान पड़ता है कि किसी देश का नौजवान हमारे देश के युवकों की भाँति उदासीन नहीं है। उसके जीवन का कार्यक्षेत्र अपने देश के बाहर भी है। वह निरन्तर उन्नति के मार्ग पर बढ़ने के लिये प्रयत्न करता रहता है और अपनी समस्याओं को सुलझाने की स्वयं जिम्मेदारी समझता है। वह दुनिया के सामने मस्तक उठा कर चलने को अपना जीवन समझता है। परन्तु तुम आज अपनी शक्ति और कर्त्तव्य को भूलकर बेबसी का रोना ही रो रहे हो।
ईश्वर ने मनुष्य को संपूर्ण योग्यताएँ और शक्तियाँ देकर इस संसार में स्वच्छंदतापूर्वक जीवन बिताने के लिए भेजा है। परमात्मा कभी नहीं चाहता कि उसकी एक संतान सिंहासन पर बैठे और दूसरी संतान दर-दर ठोकरें खाए। पिता को अपने सभी बच्चे प्यारे होते हैं। वह सभी को सुखी देखना चाहता है। अगर तुम दु:खी हो, तो परमात्मा का अपराध नहीं है, वरन् तुम स्वयं अपने हाथों अपने पैर में कुल्हाड़ी मार रहे हो। ईश्वर ने हमें स्वस्थ शरीर और शक्तिशाली मन स्वतंत्रतापूर्वक सुखमय जीवन जीने के लिए दिया है, अपना अधिकार प्राप्त करने और उन्नति करने के लिए दिया है, रोने, झींखने और हाय-हाय करने के लिए नहीं दिया है। ऐसा सर्वसंपन्न शरीर और मन देने का तात्पर्य यही है कि मनुष्य सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करे।
परमात्मा की दी हुई शक्तियों का जो सदुपयोग करते हैं, वे सर्वसुख संपन्न होते हैं और जो व्यक्ति अपनी शक्तियों को भूलकर उनका दुरुपयोग करते है, उन्हें जीवन में दु:ख भोगना पड़ता है, उन्हें जिंदगी रोते-रोते बितानी पड़ती है। अपने अस्तित्व को समझे, दुनियाँ में कोई ताकत नहीं जो तुम्हें सुख, शांति, स्वतंत्रता से वंचित कर सके। आज से ही अपनी शक्तियों का सदुपयोग करना शुरू कर दो।