एक बार स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में अध्यात्म पर भाषण दे रहे थे। अमेरिकनों ने सभा में ही पूछा स्वामी जी! क्या भारतवासी पूर्ण अध्यात्मवादी हो गये हैं, जिससे उन्हें उपदेश न देकर आपको अमेरिका आने की आवश्यकता अनुभव हुई? स्वामी जी ने इस प्रश्न का बड़ा अच्छा उत्तर दिया। उन्होंने कहा- आप अमेरिका निवासी रजोगुणी स्थिति में है, धनी और विद्या सम्पन्न है इसलिए आप ही सतोगुण स्थिति में चलने के, अध्यात्म का अवलम्बन करने के अधिकारी हैं। मैं अधिकारी पात्रों को ढूँढ़ता हुआ आपके पास अमेरिका आया हूँ। मेरे देश वासी इस समय, दरिद्रता, अविद्या और पराधीनता में जकड़े पड़े हैं, उनकी स्थिति तम की है। मैं उनसे कहा करता हूँ कि- तुम उद्योगी बनो, अधिक कमाओ, अच्छा खाओ और सम्मान पूर्वक जीना सीखो यही उनके लिए आत्मोन्नति का मार्ग है। तम की स्थिति को पार कर रजोगुण में जागृत होना और तदुपरान्त सतोगुण में पदार्पण करना आत्मोन्नति का यह सीधा सा मार्ग है।
जो लोग पिछले जीवन में कुमार्ग गामी रहे हैं, बड़ी ऊटपटाँग गड़बड़ करते रहे हैं वे भूले हुए, पथभ्रष्ट तो अवश्य हैं पर इस गणन प्रक्रिया द्वारा भी उन्होंने अपनी चैतन्यता बुद्धिमत्ता, जागरुकता और क्रियाशीलता को बढ़ाया है। यह बढ़ोतरी एक अच्छी पूँजी है। पथ भ्रष्टता के कारण जो पाप उनसे बन पड़े हैं वे पश्चाताप और दुःख के हेतु अवश्य हैं पर संतोष की बात इतनी है कि इस कँटीले, पथरीले, लहू-लुहान करने वाले, ऊबड़-खाबड़ दुखदायी मार्ग में भटकते हुए भी मंजिल की दिशा में ही यात्रा की है। यदि अब संभल जाया जाय और सीधे राजमार्ग से, सतोगुणी आधार से आगे बढ़ा जाय तो पिछला ऊल-जलूल कार्यक्रम भी सहायक ही सिद्ध होगा।
पिछले पाप नष्ट हो सकते हैं, कुमार्ग पर चलने से जो घाव हो गये हैं वे थोड़ा दुख देकर शीघ्र अच्छे हो सकते हैं। उनके लिए चिंता एवं निराशा की कोई बात नहीं। केवल अपनी रुचि और क्रिया को बदल देना है। यह परिवर्तन होते ही बड़ी तेजी से सीधे मार्ग पर प्रगति होने लगेगी। दूरदर्शी तत्वज्ञों का मत है कि जब बुरे आचरणों वाले व्यक्ति बदलते हैं तो आश्चर्य जनक गति से सन्मार्ग में प्रगति करते हैं और स्वल्प काल में ही सच्चे महात्मा बन जाते हैं। जिन विशेषताओं के कारण वे सफल बदमाश थे वे ही विशेषताएं उन्हें सफल संत बना देती है।