मृत्यु से मनुष्य बहुत डरता है। इस डर के कारण की खोज करने पर प्रतीत होता है कि मनुष्य मृत्यु से नहीं वरन् अपने पापों के दुष्परिणामों से डरता है। देखा जाता है कि यदि मनुष्य को कहीं कष्ट या विपत्ति के स्थान में जाना पड़े, तो वह जाते समय बहुत डरता और व्याकुल होता है। मृत्यु से मनुष्य इसलिए घबराता है कि उसकी अंत:चेतना ऐसा अनुभव करती है कि इस जीवन का मैंने जो दुरुपयोग किया है, उसके फलस्वरूप मरने के पश्चात् मुझे दुर्गति में जाना पड़ेगा। जब कोई व्यक्ति वर्तमान की अपेक्षा अधिक अच्छी, उन्नत और सुखकर परिस्थिति के लिए जाता है, तो उसे जाते समय कुछ भी कष्ट नहीं होता, वरन् प्रसन्नता होती है। जो लोग अपने जीवन को निरर्थक, अनुचित और अनुपयोगी कार्यों में खर्च कर रहे हैं, वे लोक मृत्यु से उसी प्रकार डरते हैं जैसे बकरा कसाईखाने के दरवाजे में घुसता हुआ भावी पीड़ा की आशंका से डरता है।
यदि आप मृत्यु के भय से बचना चाहते हैं, तो अपने जीवन का सदुपयोग करना, अपने कार्यक्रम को धर्ममय बनाना आरंभ कर दीजिए। ऐसा करने से आप की अंत:चेतना को यह विश्वास होने लगेगा कि भविष्य अंधकारमय नहीं, वरन् प्रकाशपूर्ण है। जिस क्षण मृत्यु का भय भाग जाता है। तब वह शरीर- परिवर्तन को वस्त्र- परिवर्तन की तरह एक मामूली बात समझता है और उससे जरा भी डरता या घबराता नहीं।