सुख, धन के ऊपर निर्भर नहीं, वरन् सद्ज्ञान के ऊपर, आत्मनिर्माण के ऊपर निर्भर है। जिसने आत्मज्ञान से अपने दृष्टिकोण को सुसंस्कृत कर लिया है, वह चाहे साधन-संपन्न हो चाहे न हो, हर हालत में सुखी रहेगा। परिस्थितियाँ चाहे कितनी ही प्रतिकूल क्यों न हों, वह प्रतिकूलता में अनुकूलता का निर्माण कर लेगा। उत्तम गुण और उत्तम स्वभाव वाले मनुष्य बुरे लोगों के बीच रहकर भी अच्छे अवसर प्राप्त कर लेते हैं।
विचारवान मनुष्यों के लिए सचमुच ही इस संसार में कहीं कोई कठिनाई नहीं है। शोक, दु:ख, चिंता और भय का एक कण भी उन तक नहीं पहुँच पाता। प्रत्येक दशा में वे प्रसन्नता, संतोष और सौभाग्य अनुभव करते रहते हैं।
सद्ज्ञान द्वारा आत्मनिर्माण करने का लाभ, धन जमा करने के लाभ की अपेक्षा अनेक गुना महत्त्वपूर्ण है। सचमुच जो जितना ही ज्ञानवान है, वह उतना ही बड़ा धनी है। यही कारण है कि निर्धन ब्राह्मण को अन्य संपन्न वर्णों की अपेक्षा अधिक सम्मान दिया जाता है।
मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी ज्ञान है। इसलिए वास्तविकता को समझो, धन के पीछे रात-दिन पागल रहने की अपेक्षा, सद्ज्ञान का संचय करो। आत्मनिर्माण की ओर अपनी अभिरूचि को मोड़ो।