भारत में सदियों से धार्मिक, आर्थिक, राजनीति क, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन पर पुरुषों की सत्ता कायम रही है। इसके बावजूद महिलाओं ने अपना योगदान इतिहास में हमेशा दर्ज कराया है। भारत का सबसे प्रसिद्ध स्मारक ताजमहल भले ही एक पुरुष द्वारा निर्मित कराया गया, परन्तु इसे एक महिला के लिए ही बनवाया गया था। शायद बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि मात्र ताजमहल ही किसी महिला से संबंधित नहीं है, बल्कि भारत में बहुत से ऐसे स्मारक और इमारतें है जो महिलाओं द्वारा निर्मित है।
यह श्रृंखला भारतीय इतिहास की उन 9 महिलाओं की बात करती है, जिन्होंने देश को ऐसे खूबसूरत स्मारक दिए। आईये उनके भुला दिये गये योगदान पर एक नज़र डाले –
इतमाद उद दौला का मकबरा नूरजंहाँ द्वारा अपने पिता मिर्ज़ा गियास बेग को श्रद्धांजलि देने हेतु यमुना के किनारे पर बनवाया गया था। मिर्ज़ा गियास बेग को इतमाद उद दौला उपनाम दिया गया था। यह भारतीय इतिहास में निर्मित संगमरमर का सर्वप्रथम मकबरा है। अत्यंत सुन्दर, सुसज्जित, परिश्रम और कोमलता से बनाये गए इस मकबरे में स्त्रीय अनुभूति होती है। इस मकबरे के निर्माण में लाल और पीले बलुई पत्थरों का भी प्रयोग किया गया है, जिससे यह एक आभूषण पेटी (ज्वेलरी बॅाक्स) के समान दिखाई देता है।
हम्पी में स्थित विरुपाक्ष मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।विरुपाक्ष मंदिर 740 ई.पू. में रानी लोकमहादेवी द्वारा अपने पति राजा विक्रमादित्य द्वितीय की पल्लव शासकों पर विजय के उपलक्ष्य में पट्टदकल में बनवाया गया था। यह मंदिर निर्माण में उत्तर भारतीय नागर कला और दक्षिण भारतीय द्रविड़ कला का एक सुन्दर और अद्भुत मिश्रण है। रानी लोकमहादेवी के द्वारा निर्मित कराये जाने के कारण यह ऐश्वर्यशाली, अद्भुत मंदिर लोकेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
यह बाग में निर्मित भारतीय उपमहाद्वीप का पहला मकबरा है। हुमायुँ के मकबरे का निर्माण उनकी पत्नी हमीदा बानु बेगम (हाजी बेगम के नाम से भी जानी जाती है) ने कराया था। इस मकबरे का निर्माण भारतीय और पारसी शिल्पकारों द्वारा संयुक्त रुप से किया गया था। इसके निर्माण में शानदार लाल बलुई पत्थरों का प्रयोग किया गया था। यह मकबरा सुन्दरता से पत्थरों को तराशे जाने और टाइल से बेहतरीन सुसज्जा के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। इसमें दोनों ही संस्कृति के सम्पूर्ण सुसज्जित तत्व परिलक्षित होते हैं। यह भारतीय भवन निर्माण कला में निर्मित पहला ऐसा मकबरा है, जिसमें पारसी गुम्बद का प्रयोग किया गया है।
रानी का वाव बावड़ी का निर्माण ग्यारहवीं शताब्दी में सोलंकी राजवंश में रानी उदयमती द्वारा अपने पति राजा भीमदेव प्रथम के लिए करवाया गया था। बावड़ी एक विशेष प्रकार की जल प्राप्ति और संचय का साधन है। यह बावड़ी मरु-गुर्जर शैली में निर्मित की गयी है। जल में दिखने वाली इसकी छाया जल में देवत्व की अनुभूति कराती है। रानी का वाव में सीढ़ियों के सात स्तर है। 500 मुख्य मूर्तियां तथा हजार से अधिक छोटी मूर्तियां इसकी आयताकार दीवारों पर सुसज्जित हैं।
दिल्ली में स्थित पुराने किले के बिल्कुल सामने प्रभावी ढंग से निर्मित दो मंजिला इमारत ख्यार अल-मंजिल का निर्माण 1561 में माहम अंगा द्वारा करवाया गया था। माहम अंगा बादशाह अकबर की सबसे शक्तिशाली परिचारिका थी। दरबार की अत्यंत प्रभावशाली महिला, जिन्होंने अकबर के बचपन में मुगल साम्राज्य पर संक्षिप्त रूप से शासन किया। इस मस्जिद में पाँच ऊँचे मेहराब है, जो इबादतगाह की ओर निर्मित है। इस मस्जिद में अत्यंत सुंदर शिला लेख निर्मित है। लाल बलुई पत्थरों द्वारा निर्मित इसका बड़ा व भारी द्वार अत्यंत प्रभावशाली है।
यह किला अग्नाशिनी नदी के किनारे पर स्थित है। मीरजान किला ऊँचे रक्षा बुर्जों तथा द्वि-स्तरीय ऊँची दीवारों से घिरा हुआ उन्नत किला है। गेरसोप्पा की रानी चेन्नाभैरादेवी ने इस किले को स्थापित किया तथा सोलहवीं शताब्दी के दौरान लगभग 54 वर्ष तक इस शक्तिशाली किले में निवास किया।इनके साम्राज्य में सर्वश्रेष्ठ काली मिर्च उत्पादन के योग्य भूमि होने के कारण इन्हें पुर्तगालियों द्वारा “रैना दे पिमेन्टा” और “द पैपर क्वीन” की संज्ञा दी गई। इन्होंने अपने साम्राज्य में अनेक राज्यों से युद्ध से भागे शिल्पियों को शरण दी। इसके बदले में उन शिल्पकारों ने रानी के लिए इस किले के निर्माण में प्रचुर मात्रा में सहयोग दिया।
इस मस्जिद को 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शरकी की बेगम राजई बीबी ने निर्मित कराया था। लाल दरवाजा मस्जिद सन्त सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन को समर्पित है। यह मस्जिद लगभग अटाला मस्जिद की नकल कर बनाया गया है किन्तु यह अटाला मस्जिद से थोड़ा छोटा है और इसका नाम इसके चमकदार लाल रंग से पोते गए दरवाज़े की वजह से दिया गया है। रानी ने अपने पति के शासनकाल में अपने राज्य में लड़कियों के लिए पहला स्कूल बनवाया तथा उनके द्वारा निर्मित मदरसा, जामिया हुसैनिया आज भी मौजूद है।
इस मंदिर का निर्माण कश्मीर के तत्कालीन शासक राजा हरि सिंह की पत्नी महारानी मोहिनी बाई सिसोदिया ने 1915 ई. में करवाया था। मोहिनीश्वर शिवालय मंदिर गुलमर्ग के बीचों-बीच पहाड़ी पर स्थित है। इस मन्दिर का नाम महारानी के सम्मान में मोहिनीश्वर रखा गया था। महारानी मन्दिर कश्मीर के डोगरा राजवंश का शाही मन्दिर है। चमकदार लाल ढलुआ छत से ढका होने और पृष्ठभूमि में बर्फीली पहाड़ियाँ होने के कारण इसकी रमणीयता देखते ही बनती है। यह मनोहारी मन्दिर गुलमर्ग कस्बे के लगभग हर कोने से दिखाई देता है।
1.67 लाख की लागत से बने माहिम कॅासवे का निर्माण 1843 में मशहुर पारसी व्यापार ी जमशेदजी जीजीभाय की पत्नी लेडी अवाबाई जमशेदजी ने करवाया था। माहिम नदी में एक हादसा हुआ था, जिसमें 20 नाव दलदली भंवरयुक्त जमीन में पलट गई थी। इस हादसे ने अवाबाई को बांद्रा आइसलैण्ड और बॅाम्बे की मुख्य भूमि को जोड़ने वाला एक कॅासवे बनवाने के लिए विवश कर दिया।माहिम कॅासवे आज भी मुम्बई के लोगों के लिए जीवन रेखा का काम करता है।
इन स्मारकों के विषय में जानने के बाद यह स्पष्ट है कि महिलाएँ निर्माण के सन्दर्भ में कभी पीछे नही रहीं हैं, चाहे वह जीवन निर्माण हो या भवन स्थापत्य।
source- better india
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पटना: डिहरी शहर के पूर्वी हिस्से में सोन नद पर बना 118 साल पुराना अपने समय का देश का सबसे लंबा रेल पुल इतिहास के पन्नों में सिमट गया. रेलवे ने इस पुल को कबाड़ के हाथों बेच दिया. दिल्ली को कोलकाता से जोड़ने वाला ग्रैंड कार्ड लाइन पर डेहरी में इस पुल का निर्माण सन 1897 में प्रारम्भ हुआ था. इसे रेल यातायात के लिए सन 1900 में खोल दिया गया. इस पुल के जर्जर होने के कारण रेलवे द्वारा सोन नद में इसके समानांतर नया पुल का निर्माण कर पुराने पुल पर रेल का परिचालन बंद कर दिया गया था.
अब इस रेल पुल में लगे सामानों को टेंडर लेने वाली कंपनी ने हटाने का कार्य भी तेज कर दिया है. लोहे के खंभों की कटाई भी तेजी से की जा रही है. जिससे यह रेल पुल हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा.
शाहाबाद गजेटियर के अनुसार 10052 हजार फीट लंबे इस रेल पुल का निर्माण आयरन गिरडर्स व बड़े-बड़े पत्थरों से हुआ था. उस समय स्विट्जरलैंड की टे-ब्रिज की लंबाई 10527 फिट के बाद विश्व के लम्बे रेल पुलों में इसकी गणना होती थी. 93 पाया वाले इस रेल पुल में एक पिलर से दूसरे पिलर की दूरी लगभग 33 मीटर है. पुल की स्थिति जर्जर होने के कारण इस रेल पुल पर रेल परिचालन की गति एक दशक तक 40 किमी तक सीमित की गई थी. फिलवक्त यहां नया रेल पुल का निर्माण किया गया है. जिसके बाद इस रेल पुल को समाप्त करने का टेंडर ‘चिनार स्टील सिग्मेंट सेंटर प्राइवेट लिमिटेड, कोलकाता’ को दिया गया. जहां कटाई का कार्य भी अब अंतिम चरण में पहुंच गया है.
गौरतलब हैं कि, आजादी से पूर्व ब्रिटिश काल में 27 फरवरी, 1900 में बने नेहरू सेतु का इतिहास गौरवशाली रहा है. निर्माण के समय उक्त पुल एशिया के सबसे लंबा रेल पुल था. मुगलसराय-गया ग्रांडकॉर्ड रेल लाइन पर डेहरी ऑन-सोन स्टेशन से सोन नगर जंक्शन को जोड़ने के लिए सोन नदी पर बना उक्त रेल पुल वर्तमान में एशिया महादेश में रेलवे का दूसरा सबसे लंबा पूर्ण बन गया था. वर्तमान में इससे लंबा रेल पुल बेंबानाड रेल ब्रिज है जो भारत के केरल में 11 फरवरी, 2011 में बना है.