अगर आपको स्वर्ण, कांच और लकड़ी की बारीक कारीगरी का बेजोड़ नमूना देखना है तो अजमेर की सोनीजी की नसियां पर चले जाए… यहां से खूबसूरत नजारा दुनियाभर में कहीं नहीं मिलेगा।
यह दिगंबर जैन समाज की श्रद्धा का प्रतीक है। चौबीस तीर्थंकरों में से प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का मंदिर। राय बहादुर सेठ मूलचंद नेमीचंद सोनी ने इसे बनवाया। यहां रोजाना बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं।
इसका निर्माण कार्य 10 अक्टूबर 1864 ईस्वी में आरंभ किया गया और 26 मई 1865 को भगवान ऋषभदेव -भगवान आदिनाथ की प्रतिमा मंदिर के मध्य वेदी में स्थापित की गई।
इस मंदिर का नाम श्री सिद्धकूट चैत्यालय है। करौली के लाल पत्थर से निर्मित होने के कारण इसे लाल मंदिर भी कहा जाता है।
इस नगरी में सुमेरू पर्वत आदि की रचना का निर्माण कार्य जयपुर में हुआ। इसे बनाने में 25 साल लगे। समस्त रचना आचार्य जिनसेन द्वारा रचित आदि पुराण के आधार पर बनाई गई, सोने के वर्क से ढंकी हुई है।
इस रचना को मंदिर के पीछे निर्मित विशाल भवन में 1895 में स्थापित किया गया। भवन के अंदर का भाग बहुत ही सुंदर रंगों, अनुपम चित्रकारी एवं कांच की कला से सज्जित है।
अजमेर स्थित दरगाह शरीफ, ग्रेट वाल ऑफ इंडिया तथा श्री सिद्धकूट चैत्यालय मंदिर में बनी अयोध्या नगरी देखने के लिए पयर्टक अक्टूबर आैर अप्रैल महीने में आ सकते हैं।
25 सालों में बनी ये स्वर्ण अयोध्या नगरी है ख़ास... देखने आतें हैं देशी-विदेशी सैलानी