बचपन में हमें लगता था कि यार कब बड़े होंगे और अब जब बड़े हो गए हैं, तो हर वक़्त अपने स्कूल डेज़ को याद कर आहें भरते रहते हैं, कि काश कोई फिर से हमारे वो दिन लौटा दे. वो दोस्तों के संग क्लास बंक करना, क्लास के दौरान चुपके से टिफ़िन खाना, टीचर की नकल उतारना.
तो चलिये एक बार फिर से आपको अपने बचपन की सुनहरी यादों में ले चलते हैं.
टिफ़िन के लिए मारा-मारी
फ़्रेंड सर्कल में एक दोस्त हमेशा ऐसा होता था, जो बहुत टेस्टी खाना लाता था. उसका टिफ़िन खाने के लिए मारा-मारी होती थी. कभी-कभी तो क्लास के दौरान ही लंच ख़त्म कर लिया जाता था.
बोर्ड एग्ज़ाम्स
बोर्ड एग्ज़ाम्स की टेंशन और दोस्तों के साथ रातभर पढ़ाई करने के प्लान, जो हमेशा बातें करने और 12 बजे के बाद सो जाने पर ही दम तोड़ देते थे.
गुड मॉर्निंग विश करना
क्लास में किसी भी टीचर के एंटर करते ही कोरस में गुड मॉर्निंग गाना.
पहला क्रश
चाइल्डहुड का पहला क्रश हर किसी को याद होता है, फिर चाहे वो आपकी टीचर हो या फिर आपकी क्लासमेट.
घंटी बज गई
वो पल जिसका सभी को इंतज़ार होता था कि यार अब बस घंटी बजने ही वाली है और हम बैग पैक कर तैयार बैठ रहते थे.
हॉलीडे होम वर्क
छुट्टियों के काम की तो हमेशा आखिरी 3-4 दिनों में ही याद आती थी और जैसे-तैसे इसे निपटाया जाता था.
पेंसिल VS पेन
उस दिन का बेसब्री से इंतजार करना, जब पेंसिल की जगह पेन का इस्तेमाल करने को मिलेगा.
हमेशा लेट आने वाला दोस्त
उस लेट लतीफ़ को कौन भूल सकता है, जो हर रोज़ किसी ना किसी वजह से लेट हो जाता था.
एग्ज़ाम के दिनों में छिपकर शक्तिमान देखना
परीक्षा के दिनों में घर के टीवी पर मां की नज़र रहती थी. उनसे छुपकर दोस्तों के घर जाना और शक्तिमान देखना.
Assembly के दौरान की जाने वाली शरारतें
अकसर Assembly में दोस्तों के साथ मसखरी करना और एक आंख खोल कर ये देखना कि किसने आंखें बंद नहीं की.
पीटीएम
इस दिन को फ़ेस करने से सभी को डर लगता था, क्योंकि इस दिन टीचर और माता-पिता जमकर हमारी क्लास लेते थे.
रोल नंबर 1
वो बेचारा जिसका रोल नंबर 1 होता था, कॉपी चेक कराने के लिये पहले उसे ही बुलाया जाता था.
स्कूल ड्रेस
स्कूल ड्रेस में भी हमेशा स्टाइलिश दिखने की कोशिश करना. कभी टाई लूज़ करना या फिर शर्ट को बाहर निकालना.
वॉशरूम
स्कूल में दोस्तों के साथ हैंगआउट करने की फे़वरेट जगह होती थी.
सरप्राइज़ यूनिट टेस्ट
टीचर का वो सरप्राइज़ यूनिट टेस्ट और दोस्त को कहना, ‘यार कुछ तो बता दे.’
क्लास बंक करना
वो पहली बार जब दोस्तों के साथ क्लास बंक कर फ़िल्म देखने गये थे. उसका मज़ा ही कुछ और था.
डबल पीरियड
इसका नाम सुनते ही दिमाग का पारा सातवें आसमान पर चढ़ जाता था.
स्कूल डेज़ आर दा बेस्ट!
जब बच्चे थे, तो ही अच्छे थे! ज़िन्दगी से लड़ते हुए याद आते हैं वो 17 पल, जो कभी स्कूल में जिए थे