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ज्योतिष

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प्रिय मित्रों/पाठकों, यदि आप थोड़ा-बहुत ज्योतिष भी जानते हैं तो खुद देख लीजिए आपकी जन्म कुंडली में धनवान होने के योग, कितना पैसा है आपकी किस्मत में...जानिए ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी से जन्म कुण्डली के कुछ प्रमुख धनवान बनाने वाले योग को --- यदि लग्न से त

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राशियाँ हर किसी की ज़िंदगी में एक विशेष महत्त्व रखती हैं।हर किसी की किस्मत राशियों से जुडी होती है। तो आइये जानते हैं पं. दयानन्द शास्त्री से कि किन-किन राशियों पर है विघ्नहर्ता गणेश जी की असीम कृपा और साथ ही कैसा रहेगा आपका आज का दिन । मेषपुराना रोग उभर सकता है। योजना फलीभूत होगी। कार्यस्थल पर परिवर

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नक्षत्रों के आधार पर हिन्दी महीनों का विभाजन और उनके वैदिक नाम:- ज्योतिष में मुहूर्त गणना, प्रश्न तथा अन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त कियेजाने वाले पञ्चांग के आवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थतथा पर्यायवाची शब्दों के विषय में हम पहले बहुत कुछ लिख चुके हैं | अब

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व्यक्ति के जीवन में सुख और दुख ग्रहों की चाल पर निर्भर करता है हर व्यक्ति के जीवन में रोजाना किसी ना किसी प्रकार के बदलाव देखने को मिलते हैं ज्योतिष के जानकारों का ऐसा मानना है कि ग्रहों में बदलाव होने की वजह से संयोग बनते हैं जिसकी वजह से सभी 12 राशियां प्रभावित होती है आज हम आपको ऐसी भाग्यशाली राश

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रेवतीज्योतिष मेंमुहूर्त गणना, प्रश्न तथा अन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जानेवाले पञ्चांग के आवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथापर्यायवाची शब्दों के विषय में हम बात कर रहे हैं | इस क्रम में अब तक अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वस

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धनिष्ठाज्योतिष में मुहूर्त गणना, प्रश्न तथाअन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग केआवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दोंके विषय में हम बात कर रहे हैं | इस क्रम में अब तक अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्

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दोनों आषाढ़ ज्योतिष में मुहूर्त गणना, प्रश्न तथाअन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग केआवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दोंके विषय में हम बात कर रहे हैं | इस क्रम में अब तक अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, प

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मूलज्योतिष में मुहूर्त गणना, प्रश्न तथाअन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग केआवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दोंके विषय में हम बात कर रहे हैं | इस क्रम में अब तक अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु,

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अनुराधा नक्षत्र नक्षत्रों की वार्ता को ही और आगे बढाते हैं | ज्योतिष मेंमुहूर्त गणना, प्रश्न तथा अन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं केलिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग के आवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों कीव्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दों के विषय में हम बात कर रहे हैं |इस क्रम में अब तक अश

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नक्षत्रों की व्युत्पत्ति तथा उनके अर्थअभी तक हमने 27 नक्षत्रों के आधार पर बारह हिन्दी महीनों केनाम तथा उनके वैदिक नामों के विषय में चर्चा कर रहे थे | किन्तु जिन नक्षत्रों के नाम पर हिन्दी महीनों के नाम रखे गए उन नक्षत्रों केनाम किस प्रकार बने यह विचारणीय प्रश्न है | तो अब

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प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि नक्षत्रों को वैदिक ज्योतिषमें इतना अधिक महत्त्व क्यों दिया गया ? जैसा कि हमने पहले भीबताया, नक्षत्र किसी भी ग्रह की गति तथा स्थिति कोमापने के लिए एक स्केल अथवा मापक यन्त्र का कार्य करते हैं | यही कारण है कि पञ्चांग (Indian Vedic Ephemeris) के पाँच अं

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समस्त बारहवैदिक मासों का आधार नक्षत्र मण्डल ही है | प्रत्येक माह को पूर्ण चन्द्र की रात्रिपूर्णिमा कहलाती है | पूर्णिमा को जो नक्षत्र पड़ता है, वैदिक महीनों का नाम उन्हीं नक्षत्रों के नाम पर होता है | अर्थात प्रत्येक पूर्णिमाका चन्द्र नक्षत्र उस माह के वैदक नाम है | जैसे,

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महाभारत में नक्षत्र विषयक सन्दर्भ रामायण के हीसमान महाभारत में ज्योतिष विद्या के स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध होते हैं | महाभारत का युद्ध आरम्भहोने से पूर्व ही समस्त ज्योतिषियों, सर्वतोभद्र चक्र के ज्ञाताओं, प्रश्न मर्मज्ञों और मुहूर्तविदों ने उस समय कीग्रह नक्षत्रों आदि की स्थित

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पौराणिक ग्रन्थों जैसे रामायण में नक्षत्र विषयक सन्दर्भ :-वेदांग ज्योतिषके प्रतिनिधि ग्रन्थ दो वेदों से सम्बन्ध रखने वाले उपलब्ध होते हैं | एक याजुष्ज्योतिष – जिसका सम्बन्ध यजुर्वेद से है | दूसरा आर्च ज्योतिष – जिसका सम्बन्ध ऋग्वेद सेहै | इन दोनों हीग्रन्थों में वैदिककालीन

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कल श्रावण कृष्ण पञ्चमी को कौलव करणऔर अतिगण्ड योग में 12:27 के लगभग समस्त सांसारिक सुख, समृद्धि, विवाह, परिवार सुख, कला, शिल्प,सौन्दर्य, बौद्धिकता,राजनीति तथा समाज में मान प्रतिष्ठा में वृद्धि आदि काकारक शुक्र शत्रु ग्रह सूर्य की सिंह राशि से निकल कर मित्र ग्रह बुध की कन्याराशि में प्रविष

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