चित्रा नक्षत्र
अब पुनः नक्षत्रों की वार्ता को ही आगे बढाते हैं | ज्योतिष में मुहूर्त गणना, प्रश्न तथा अन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग के आवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दों के विषय में हम बात कर रहे हैं | इस क्रम में अब अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, दोनों फाल्गुनी और हस्त नक्षत्रों के विषय में हम बात कर चुके हैं | आज चर्चा करते हैं चित्रा नक्षत्र के नाम और उसके अर्थ के विषय में | नक्षत्र मण्डल में चित्रा नक्षत्र चौदहवें क्रम पर आता है | वैदिक ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा के अश्विनी नक्षत्र से रेवती नक्षत्र तक 27 नक्षत्रों की यात्रा काल में चित्रा नक्षत्र चौदहवाँ पड़ाव होता है | इस प्रकार नक्षत्र मण्डल में यह नक्षत्र चन्द्रमा की यात्रा का मध्य बिन्दु अथवा मध्य पड़ाव भी होता है – क्योंकि इसके पहले भी और इसके बाद में भी तेरह तेरह नक्षत्र होते हैं | तो आइये इसी नक्षत्र के नाम और उसके अर्थ के विषय में आज बात करते हैं...
चित्र से चित्रा शब्द बना है जिसका अर्थ होता है चित्र-विचित्र, चमकदार, स्पष्ट, स्वच्छ, आकर्षक, मनमोहक, मनोरम, विनोदी, सुहाना, किसी वस्तु पर पड़े हुए विविध प्रकार के धब्बे | और भी अर्थ हैं जैसे – चित्र की भाँति सुन्दर, अद्भुत, अतुलनीय, आकर्षक, आश्चर्यजनक इत्यादि | इन अर्थों को समझने के लिए एक विशेष तथ्य पर ध्यान देना आवश्यक है | वैदिक काल में जब नक्षत्रों का नामकरण किया गया था उस समय निश्चित रूप से चित्रकारों द्वारा बनाए गए चित्रों की ही प्रधानता थी | उस काल में जितने भी कुशल चित्रकार होते थे वे सम्भवतः उन लोगों के चित्र अधिक बनाया करते होंगे जो उन्हें बहुत सुन्दर अथवा आकर्षक लगा करते होंगे या समाज में – क़बीले में जिनका मान सम्मान होता होगा अथवा जो अपने स्थान पर किसी महत्त्वपूर्ण पद पर आसीन होते होंगे – जिनका प्रभाव जन सामान्य पर पड़ता होगा | किसी भी कलाकार को अपने रचना कौशल के प्रदर्शन के लिए कोई न कोई तो प्रेरणा स्रोत चाहिए ही होता है | अस्तु, उन्हीं प्रभावशाली व्यक्तित्वों से से अन्य साधारण व्यक्तियों की ही भाँति चित्रकार भी प्रभावित होता होगा | या फिर किसी ऐसी वस्तु या परिस्थिति का चित्र बनाते होंगे जो स्वयं में अद्भत और आकर्षक होती होगी | और सम्भवतः इसी कारण से उस समय के उपलब्ध साहित्य में अत्यन्त सुन्दर व्यक्ति या वस्तु या परिस्थिति को भी चित्र – चित्र के समान अद्भुत – ही कहा जाने लगा | यही कारण था कि चित्रा शब्द सौन्दर्य, आश्चर्यजनक वस्तुओं तथा अद्भुत का पर्याय बन गया | और वैदिक ज्योतिषियों की ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति चित्रा नक्षत्र में जन्म लेगा उसमें ये समस्त गुण अवश्य ही विद्यमान होने चाहियें |
एक बड़े चमकीले पत्थर को भी चित्रा कहा जाता है | सम्भवतः ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस नक्षत्र में चित्रा नाम का एक ही चमकीला तारा होता है और उसी के नाम पर इसका नाम भी चित्रा रखा गया है | अर्जुन की पत्नी तथा बभ्रुवाहन की माता का नाम भी चित्रा (चित्रांगदा) था | प्रायः देखा गया है कि इस नक्षत्र में जिन जातकों का जन्म होता है वे या तो आर्थिक रूप से बहुत सम्पन्न होते हैं, अथवा एक ही समय में बहुत से गुणों से युक्त तथा बहुत से विद्याओं और कलाओं में निपुण होते हैं | इन व्यक्तियों का व्यवहार भी बहुत उत्तम होता है | यह नक्षत्र चैत्र माह में आता है जो मार्च और अप्रेल के मध्य पड़ता है | इस नक्षत्र के अन्य नाम तथा भाव हैं त्वष्टा – रचनाधर्मिता – ब्रह्मा का एक नाम – चित्रा नक्षत्र के अधिपति तथा निर्माण एवं सृजन का देवता और देवों के प्रसिद्ध शिल्पकर्मी विश्वकर्मा जिन्होंने अनेकों लोकों और नगरों का निर्माण किया, तक्ष – घायल करना |
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2018/09/25/constellation-nakshatras-19/