पुनर्वसु
आज फिर नक्षत्र-चर्चा | मुहूर्त गणना, प्रश्न तथा अन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग के आवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दों पर चर्चा के क्रम में अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर और आर्द्रा नक्षत्रों के बाद अब चर्चा करते हैं पुनर्वसु नक्षत्र के नाम का अर्थ क्या है और इसकी निष्पत्ति किस प्रकार हुई है |
नक्षत्र मण्डल के सप्तम नक्षत्र पुनर्वसु का शाब्दिक अर्थ है ऐसी सम्पत्ति जो निरन्तर आती रहे – निरन्तर प्राप्त होती रहे – एक के बाद एक सफलता व्यक्ति को जीवन में प्राप्त होती रहे | वसुओं को उप देवताओं के समान माना जाता है तथा वसु अपने आप में शुभता, उदारता, धन तथा सौभाग्य जैसी विशेषताओं के स्वामी होते है | पुनर्वसु नक्षत्र आर्द्रा नक्षत्र के बाद आता है तथा आर्द्रा नक्षत्र में जातक का स्वभाव भी उग्र हो सकता है जिसके कारण उसकी धन के प्रति अनिच्छा भी हो सकती है अथवा धन का अभाव भी हो सकता है | इसी कमी को पूरा करने के लिए पुनर्वसु नक्षत्र का आगमन होता है जो इसके नाम के अर्थ को सार्थक करता है। पुनर्वसु नक्षत्र का आगमन सौभाग्य का सूचक माना जाता है तथा इस प्रकार पुनर्वसु शब्द का अर्थ पुन: सौभाग्यशाली हो जाना सार्थक हो जाता है | और सौभाग्यशाली होने से अभिप्राय केवल आर्थिक स्तर पर सौभाग्यशाली होना ही नहीं होता, अपितु जीवन के हर क्षेत्र में सौभाग्यशाली होने से – जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने से इसका अभिप्राय होता है | भगवान् विष्णु और शिव का भी एक नाम पुनर्वसु है | इसमें दो या चार तारे होते हैं | इस नक्षत्र के अन्य नाम हैं : अदिति (स्वतन्त्र, असीम, नि:सीम, समग्र, प्रसन्न, पवित्र और पृथिवी) | अदिति दक्ष की प्रिय पुत्री भी थीं जिनका विवाह काश्यप ऋषि के साथ हुआ था | द्वादश आदित्य कश्यप और अदिति के ही पुत्र माने जाते हैं (अदितेः अपत्यं पुमान् आदित्यः) | ऋग्वेद के अनुसार अदिति निरन्तर शिशुओं तथा पशु सम्पत्ति पर अपनी कृपा की वर्षा करती हुई उनकी रक्षा करती रहती है तथा क्षमा की देवी है (अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स-पिता स-पुत्रः | विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ||) | यह नक्षत्र दिसम्बर और जनवरी में पौष माह में आता है |
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