नक्षत्रों की व्युत्पत्ति तथा उनके अर्थ
अभी तक हमने 27 नक्षत्रों के आधार पर बारह हिन्दी महीनों के नाम तथा उनके वैदिक नामों के विषय में चर्चा कर रहे थे | किन्तु जिन नक्षत्रों के नाम पर हिन्दी महीनों के नाम रखे गए उन नक्षत्रों के नाम किस प्रकार बने यह विचारणीय प्रश्न है | तो अब जानने का प्रयास करते हैं कि इन 27 नक्षत्रों के नामों की व्युत्पति (किस धातु आदि से किस नक्षत्र का नाम बना) किस प्रकार हुई तथा इनके अर्थ क्या हैं | आज अश्विनी नक्षत्र की व्युत्पत्ति और उसका अर्थ...
अश्विनी :-
अश्विनी नक्षत्र अश्व में इनि और ङीप् प्रत्ययों के योग से बना है | भाचक्र अथवा राशि चक्र का प्रथम नक्षत्र है यह | आश्विन माह का भी यह प्रमुख नक्षत्र है इसीलिए इस माह का नाम आश्विन है |
इसका शाब्दिक अर्थ होता है अश्वारोही – घुड़सवार | इसके अतिरिक्त भगवान् सूर्य की एक पत्नी का नाम भी अश्विनी है |
इस विषय में एक कथा उपलब्ध होती है कि विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य के साथ कर दिया था | वहाँ उसके वैवस्वत और यम नामक दो पुत्र तथा यमुना नाम की एक पुत्री हुई | किन्तु कोमल स्वभाव संज्ञा सूर्य के प्रचण्ड ताप को सहन नहीं कर पा रही थी इसलिए वन में जाकर घोड़ी के रूप में छिपकर सूर्य का ताप कम करने के लिए तपस्या करने लगी | सूर्य को जब इस बात का पता चला तो वे भो घोड़े का रूप बनाकर वन में चले गए और वहाँ संज्ञा के साथ उन्होंने संसर्ग किया | जिससे संज्ञा को नासत्य, दस्त्र और रैवत नामक पुत्र उत्पन्न हुए | इनमें से नासत्य और दस्त्र अश्विनीकुमार के नाम से प्रसिद्द हुए जो ज्ञान और गति के देवता माने जाते हैं | दोनों कुमार बाद में देवताओं के वैद्य तथा Surgeons बने |
इस नक्षत्र में तीन तारे होते हैं तथा ये तीन तारे एक साथ मिलकर अश्व के मुख जैसी आकृति बनाते हैं | इस नक्षत्र का महीना है आश्विन अर्थात सितम्बर और अक्टूबर |
इस नक्षत्र के अन्य नाम हैं नासत्य – अर्थात जो सत्य न हो, दस्त्र – उग्र (ये दोनों ही अश्विनीकुमारों के नाम हैं) | इनके अतिरिक्त अशिष्ट, असभ्य, बाधक, मूर्ख, गधा, दो का अंक, ठण्ड का मौसम आदि के लिए भी आश्विन शब्द का प्रयोग किया जाता है | घोड़े को भी अश्विन कहा जाता है |
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