27 मई 2022
शुक्रवार
समय 11:40(रात)
मेरी प्यारी सहेली,
अचानक बदलते मौसम के कारण ऐसा लग रहा है मानो बारिश होने वाली है। पर यह क्या पेड़ों की पत्तियां हिलने लगी है मानो बादलों को यहां से भागने को कह रही है। बादल गए तो बारिश नहीं। तब तो कहीं और छम छम करते हुए बारिश बरसेंगे पर यहां नहीं।
गर्मी के दिनों में सबसे ज्यादा तकलीफ स्त्री जाति को होती है। गांव में रहने वाली स्त्रियां और अधिक परेशान हो जाती है। उन्हें तो चूल्हे पर खाना बनाते हुए बेहद गर्मी और पसीने का सामना करना पड़ता है।
समाज चाहे कितना भी विकसित हो जाए पर रसोई के लिए स्त्रियों की तरफ ही देखा जाता है। मानो रसोई और स्त्री एक दूसरे के पूरक है।
किस्मत हमेशा हर व्यक्ति को आगे बढ़ने का एक मौका अवश्य देती है। इसके लिए नजर पारखी होनी चाहिए, तभी वह किस्मत द्वारा दिए गए मौके का फायदा उठा सकता है।
क्यों ना समाज में पुरुष को भी एक मौका दिया जाए। आज समाज में अनेकों आयाम बदले हैं। जीवन जीने के तरीके में बदलाव आया है। तो एक नया चांस पुरुषों को भी मिलना चाहिए।
हर काम के लिए स्त्रियों को ही आगे कर दिया जाता है। चाहे घर संभालना हो, बच्चों को, परिवार को या समाज को हर काम के लिए स्त्रियों का ही मुख देखा जाता है।
कोई काम बिगड़ जाए बच्चों के मार्क्स कम आए, बच्चों को नौकरी ना मिल पाए, लड़की की शादी ना हो पाए, बहू के लड़की हो सब दोषों के लिए स्त्री के ऊपर ही दोषारोपण कर दिया जाता है।
वही जब प्रतिष्ठा का सवाल आता है पुरुष हमेशा एक कदम आगे बढ़ कर अपना नाम मुखरित शब्दों में घोषित करता है।
रसोई में अगर एक दिन पुरुष ने कोई खाना बनाया तो पूरे सप्ताह अपने द्वारा बनाए गए खाने का गुणगान करते नहीं थकते। वही सारे साल खटने वाली स्त्री का कहीं नाम ही नहीं आता।
इतना ही नहीं उसकी दूसरों के साथ तुलना भी की जाती है। अमुक के घर में बहु इतना काम कर सकती है। अमुक के घर की बहू तो सारा दिन परिवार संभालती हैं और भी न जाने क्या-क्या।
पर हर बार अग्नि परीक्षा सीता ही क्यों दे, राम क्यों नहीं? अग्नि में से निकल कर सत्यता के पथ पर चलते हुए साबित करें कि वह सही है।
शुभ रात्रि।