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अहमियत

13 मई 2022

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13 मई 2022 
     शुक्रवार 
समय 11:30 (रात)

मेरी प्यारी सहेली,
         न जाने सहेली तुममें क्या नशा है रह रह कर कितनी ही बातें, कितने ही काम दिमाग से यूं ही निकल जाते हैं। आज ही तो सुबह दूध आया और ध्यान ही नहीं रहा गर्म करना है और दूध में दूध नहीं बचा फट कर पनीर बन गया।
           वैसे आजकल गर्मी में सब्जी बना कर रखो तो 5 घंटे में ही तुरंत गंध आने लग जाती है।
                    नहा के बाद भी तो लगता ही नहीं है कि नहाएं है या पसीना निकल रहा है। नहाने के बाद तो लगता ही नहीं कि बाथरूम से बाहर निकलो। लगता है नहाते ही रहो बस।
           पहले समाज में हम का मतलब पूरा परिवार होता था। पूरा परिवार मतलब दादा दादी, ताऊ ताई, चाचा चाची, बुआ फूफा और इन सब के बच्चे। कहीं कहीं पर तो दादा जी के भी भाई भाभी और उनका परिवार साथ ही रहते थे।
           इन सब को लेकर संयुक्त परिवार बनता था। परिवार में किसी बात को लेकर अनबन होती भी थी तो तुरंत सुलट भी जाती थी। बहस बाजी और बकवास बाजी के लिए तो समय ही नहीं बचता था और ना ही परिवार को छोड़कर अपने बारे में सोचने का।
           वही धीरे-धीरे संयुक्त परिवार की प्रथा कम होने लगी या यूं कहो बिखरने लगी। कुछ तो शहरीकरण, कुछ आजीविका कमाने के कारण परिवार के सदस्य परिवार से दूर रहने लगे।
         परेशानियां आने पर अपनी अपनी सहधर्मिनियों को लेकर जाने लगे। जिससे परिवार विघटित होने लगा। "हमारा परिवार" का स्थान मेरा परिवार ने ले लिया। जहां पहले बच्चे भी तीन चार या छह सात तक होते थे वही अब एक या दो होने लगे।
           अलग अलग रहने से संबंधों की अहमियत खत्म होने लगी। लोग अब संबंधों की कम परवाह करते।
     घर में बुजुर्गों का स्थान अब ना के बराबर था। बुजुर्गों के लिए वृद्धा आश्रम बनने लगे। परिवार के सदस्य बड़ों का, बुजुर्गों का कुछ कहना उनका दखलअंदाजी भी अब पसंद नहीं करते थे। परिवार के मायने बदलने लगे। अब समाज कुछ अलग ही तरीके से गड़ा जाने लगा है।
     संयुक्त परिवार के विघटित होने से हम दोनों और मेरा परिवार खासा अहम बन गया है। जहां पहले परिवार में प्यार और सौहार्द पाया जाता था, वहीं अब उसका स्थान मैं और हमने ले लिया। हमारा परिवार विघटित होकर मेरा परिवार बना, अब मेरा परिवार टूट कर मैं और सिर्फ मैं तक सीमित होता जा रहा है। परिवार में अहम ने डेरा जमा लिया है।
परिवार और रिश्तो की अहमियत ऐतिहासिक वस्तुएं बनती जा रही हैं। शायद कभी पुस्तकों में इन की विस्तृत व्याख्या भविष्य में कभी पढ़ने को मिल जाए, ऐसा भी हो सकता है।
     बस यही गाना गाने को जी करता है
         देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गई भगवान? कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान।।
              आज पुनः पारिवारिक संबंधों को गढ़ने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। कहीं ऐसा ना हो कि हम जो कि अब सिर्फ मैं तक ही लोग सीमित होकर रह जाए। नई सोच नए विचार के साथ विचारों के मंथन की परम आवश्यकता है।
          विचारों को अभी यहीं विराम देती हूं। फिर मिलते हैं।
                               शुभ रात्रि
               
भारती

भारती

बिल्कुल सही कहा आपने परिवार में अहम ने डेरा डाल लिया है ।बेहतरीन रचना👌🏻👌🏻

13 मई 2022

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रचनाएँ
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मेरे मन के विचार शब्दों के माध्यम से डायरी में लिखे जा रहे हैं आशा है पसंद आएगी...
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