20 मई 2022
शुक्रवार
समय 11:20 (रात)
मेरी प्यारी सहेली,
सच सारे साल की भागदौड़ और गर्मियों की छुट्टी में मायके जाना बेहद सुखद एहसास की अनुभूति प्रदान करता है।
एक लड़की 20-25 साल माता पिता के साथ जीवन बिता कर एक अनजाने परिवार में अनजाने लोगों के बीच आकर रहने लगती है। उस परिवार को हृदय से आत्मसात कर लेती है।
पर बहू के द्वारा की गई एक गलती उसके सारे अच्छे कामों पर पानी फेर देता है। न जाने कितनी ही तरह के दोषों से उसे भला बुरा कहा जाता है। उसकी सारी अच्छाई धरी की धरी रह जाती है।
इस बार मायके जाकर खूब मस्ती की। थोड़ी और मस्ती शायद हो सकती थी। पर गर्मी ने हालत पस्त कर रखे थे। सुबह या शाम के समय ही बाहर जाना हो पाता था।
मैं तो जा नहीं पाई पर बहन ने बताया कि वह गणेश मेले में जाकर आई थी। कुछ जरूरी सामान भी खरीदना था, सो खरीद लाई।
पर मेरा किसी कारण से बुधवार तक रूकना नहीं हो पाया।
मेला एक ऐसा नाम जो बचपन से मेरे दिलों में एक खास एहसास भर देता था।
ननिहाल में गर्मियों की छुट्टी में जब जाती तब कभी कभार मेले में जाना होता था।
लेकिन शादी के बाद प्रतिवर्ष मेले में जा पाती हूॅं। कारण हमारे यहां मार्च और नवंबर में मेला भरता है कभी पशु मेला तो कभी उद्योग मेला।
वहां जाकर चाट पकौड़ी ना खाई तो क्या किया? और रेट पर चढ़ना अरे बाप रे बाप।
वैसे रेट पर चढ़कर खूब मस्ती की जा सकती है पर मुझे रेट पर चढ़ने से बहुत डर लगता है। बच्चे तो बड़े वाले रेट पर चढ़ने की ज़िद करते हैं।
मैं उनके लिए टिकट खरीद कर एक तरफ को हो लेती हूं उनके लाख कहने पर भी तोबा तोबा कहते हुए साइड हो जाती हूॅं।
कोरोना के बाद से ही हमारे यहां मेले का नामो निशान तक मिट गया। वो खुशियां, आनंद अब मानो सपनों की बातें हो गई हो।
ग्वालियर के मेले में भी कई बार जाना होता था। वह दिसंबर से फरवरी तक भरता था। अलग-अलग जगह से अलग-अलग सामानों की बिक्री करने के लिए आए हुए लोग बड़ा अच्छा लगता था।
कितनी ही तरह की चीजें वहां बेची जाती थी अलग-अलग राज्यों से आने वाले लोगों का सामान देखते ही बनता था।
लेकिन कोरोना ने ही सब कुछ तहस-नहस कर दिया। अब मेले में ना वह बात है ना वह आनंद।
रात बहुत हो चुकी है तुम भी सो जाओ मैं भी।
शुभ रात्रि