18 मई 2022
बुधवार
समय 11:15
मेरी प्यारी सहेली,
सिर्फ और सिर्फ निस्वार्थ पूर्ति के लिए ज़मीन, जायदाद रुपया, पैसा अपने स्वार्थ के लिए जमा करने या दूसरों से प्राप्त करने के चक्कर में एक दूसरे का ही तिरस्कार करने पर लोग उतारू हो जाते हैं।
आज सिर्फ पैसों की खातिर भाई भाई से संतान माता-पिता से दूर होते जा रहे हैं। एक दूसरे का विश्वास खो रहे हैं, साथ देने की अपेक्षा दूर जा रहे हैं।
शमशान के अंदर जाने पर सभी के मुंह से सिर्फ एक ही बात निकलती है। मृत्यु ही शाश्वत सत्य है। पर ज्यों ही वही इंसान बाहर निकलता है स्वार्थ पूर्ति, उदर पूर्ति, तृष्णा पूर्ति में पुनः तत्पर हो जाता है। इस समय नाते रिश्तेदार सब मन मस्तिष्क से ओझल होने लगते हैं। स्वार्थ पूर्ति पर यह समाज कैसे भूल जाता है कि यह संसार नश्वर है?
सिर्फ स्वार्थ पूर्ति के लिए इंसान किस तरह दूसरों का अनिष्ट करने को तत्पर हो जाता है?
यात्रा करने के कारण आज थकावट बनी रही। निद्रा रानी भी रह-रहकर नजदीक आने की कोशिश कर रही थी। बाहर से आने पर तो घर बिखरा हुआ ही जान पड़ता है। एक तो शरीर की थकावट ऊपर से घर के हालात देखकर कई बार थकावट और अधिक हावी होने लगती है। पर कोई बात नहीं वह भी धीरे-धीरे नियंत्रण में आ ही जाएगी।
एक सहेली से तो मुलाकात हो गई और दूसरी सहेली का ना तो फोन नंबर प्राप्त कर पाई। ना उसके घर ही जा पाई। जिसकी वजह से मन में मलाल रह गया।
इस गर्मी में कुएं का पानी ताजगी भरा एहसास दे रहा है। कुए का पानी आते ही भर कर उससे नहाने पर मानो दिनभर की पूरी थकान खत्म होने जैसा लगता है।
बचपन में भी मैं कुएं के पानी का ही इंतजार करती थी। गर्मियों में इसलिए कि कुएं का पानी बहुत ठंडा आता है वही सर्दियों में भी कुएं का ताजा पानी इतना गरम रहता है कि अलग से बिना पानी गर्म किए नहाया जा सकता है।
आज के लिए इतना ही फिर मिलते हैं।
शुभ रात्रि