9 मई 2022
सोमवार
समय 10:00 (रात)
मेरी प्यारी सहेली,
मृत्यु जीवन का अटल सत्य है लेकिन फिर भी मनुष्य उस अटल सत्य से जी चुराता है, कतराता रहता है। शमशान जाते समय कहता हुआ जाता है राम नाम सत्य है। पर वहां से निकलते ही मानो एक बुरे सपने की तरह अपने जेहन से सब कुछ मिटा बैठता है।
कितनी बड़ी विडंबना है यह। इस सत्य से अनजान रहते हुए भौतिक पदार्थों के प्रति अपना जी लगाए हुए हर किसी का अनिष्ट करने की इच्छा रखता है।
बोलने सुनने को कितना कुछ, ऊंची ऊंची फेंकने से भी नहीं रुकता। पर अपने पर जहां बात आती है दो कदम पीछे हट जाता है। मानो हर अच्छी बात दूसरों को सिखाने के लिए है अपने लिए नहीं।
दिन प्रतिदिन जीवन से कई चीजें छुटती हुई दूर चली जाती हुई महसूस होती है, पर क्या वापस मिल पाती है या शायद दूर बहुत दूर चली जाती है।
आज के इस व्यस्ततम जीवन में कितना कुछ बदल चुका है। दोस्त, यार, नाते, रिश्तेदार सब बेमाने से लगने लगे हैं। वैसे तो कोरोना काल के समय संबंधों में मजबूती समझी जाने लगी थी। लोग स्वास्थ्य की तरफ ध्यान आकर्षित करते हुए नजर आ रहे थे। पर फिर वही रवैया।
इंसान तभी तो ठीक वैसा ही लगता है कि अपने स्वार्थ पूर्ति में न जाने कितना कुछ अपना गवा बैठकर सिर्फ स्वार्थ साधने में ही अपना पूरा जीवन चक्र लगा देता है।
आज एक मोर देखा। शायद सुहाना मौसम होने से दिख पड़ा हो। मुझे आज भी याद है बचपन में हम मोर देखने के लिए इतना छटपटाते थे कि कुछ ना पूछो।
स्कूल जाते समय राह में अगर मोर दिख जाए तो वहीं रुक कर 5 मिनट 10 मिनट तक इंतजार करते कि मोर दोबारा हमें दिख पड़े।
उस समय हम लोग स्कूल पैदल ही जाया करते थे। बस, ऑटो, टैक्सी तो अब चलन में आए हैं पहले तो पैदल यात्रा ही होती थी स्कूल जाने के लिए।
वह यादगार पल सच बेशकीमती है हमारे लिए। उन यादों को संजोए हुए अलग-अलग तरह से मन रोमांचित हो उठता है।
अभी के लिए इतना ही फिर मिलते हैं।
शुभ रात्रि