भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए 1857 की क्रांति में महारानी लक्ष्मीबाई का योगदान आज भी लोगों को याद है और यह देश के सभी युवाओं के लिए एक तरह से प्रेरणा की श्रोत मानी जाती हैं। जिनका जन्म 19 नवंबर 1828 को एक मराठा ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था और लोग इन्हें प्यार से मनु बुलाते थे। जब ये 4 साल की थीं तभी इनकी माता जी श्री मति भागीरथी सप्रे का निधन हो गया। इनके पिता श्री मोरोपंत तांबे बिठ्ठूर के पेशवा ऑफिस में काम करते थे। कभी-कभी रानी लक्ष्मीबाई बचपन में अपने पिता के साथ पेशवा के यहां जाया करती थीं क्योंकि पेशवा भी मनु को अपनी बेटी की तरह मानते थे और इस प्रकार उनके जीवन का कुछ भाग पेशवा के यहां बीता। मनु बचपन से ही काफी तेज प्रवृत्ति की थीं और इसी कारण पेशवा उन्हें छबीली नाम से पुकारते थे।
लगभग 18 साल की उम्र में ही उनकी शासक जैसी छवि लोगों के सामने आने लगी। 14 वर्ष में झांसी के मराठा शासक श्री गंगाधर से विवाह करने के बाद झांसी राज्य की कमान 18 वर्ष में ही उनहें सौंप दी गयी। आपको बता दें कि ब्रिटिश राज के समय एक वरिष्ठ कैप्टन ह्यूरोज ने रानी के साहस की प्रशंसा की। यह वही कैप्टन था जिसकी तलवार से रानी की मौत हुई थी। लेकिन हमारे कुछ इतिहासकारों का मत है कि उनकी मौत गोली लगने से हुई। सन् 1858 के दौरान अमर शहीद व सिंधिया राजवंश के खजांची अमरचंद्र बाठिया ने आंदोलन में सहयोग के तौर पर अहम भूमिका निभायी जिसमें उन्होंने अपने जान की भी परवाह न की और सिंधिया राजकोश की सभी धनराशी रानी को मदद के रूप में दे दी। इसी कारण अमर शहीद अमरचंद्र बाठिया के ऊपर अंग्रेजों द्वारा मुकदमा चला जिसमें उन्हें पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी गयी। आज भी स्मृति के रूप में अमरचंद्र बाठिया व महारानी रानी लक्ष्मीबाई की शहादत का प्रतीक सराफा बाजार में निर्मित है।
कुछ पंक्तियां उनकी सहादत की स्मृति के तौर पर -
“चमक उठी सन् सत्तावन में,
वो तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी
वो तो झांसी वाली रानी थी।“
“लक्ष्मी थी या दुर्गा थी,
वह स्वयं वीरता की तलवार,
देख मराठे पुलकित होते
उसकी तलवारों के वार।।“
“इनकी गाथा छोड़, चले हम
झांसी के मैदानों में,
ल्यूटेंट वॉकर आ पहुंचा
आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली,
हुआ द्वंद आसमानों में।।“
“तो भी रानी मार-काट कर
चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया
था वो संकट विषम अपार,
घोड़ा अदा नया घोड़ा था
इतने में आ गये सवार,
रानी एक शत्रु बहुतेरे
होने लगा वार पर वार।।।“
“घायल हकर गिरी सिंघनी
उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी
वो तो झांसी वाली रानी थी।।।।“
“रानी गयी सिधार
चीता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज
तेज की वो सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेईस की थी
मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी
बन स्वतंत्रता नारी थी।।।।।“
“दिखा गयी पथ, सिखा गयी
हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह
हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी
वो तो झांसी वाली रानी थी।।।।।।“