काव्य रचनाओं में निपुण महान रचनाकार श्री महादेवी वर्मा जी |Mahadevi Verma:-
काव्यों रचनाओं में निपुण महान श्री महादेवी वर्मा जी का जन्म सन् 26 मार्च 1907 को उत्तरप्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद नामक क्षेत्र में हुआ था। वर्मा जी के जन्म के संबंध में सबसे विशेष बात यह थी कि उनके परिवार में वर्मा जी के जन्म से 200 साल पहले किसी कन्या का जन्म नहीं हुआ था। वर्मा जी जन्म के बाद ही इनके घर में खुशियों के बहार जैसा माहौल सा छा गया और इनको माता रानी की कृपा से देवी का रूप माना जाने लगा और यही कारण था कि इनके दादा जी ने इनका नाम “महादेवी वर्मा” रख दिया था। इनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा, जो कि विद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहे और इनकी माता का नाम श्री मती हेमरानी देवी थीं जो कि बहुत ही धार्मिक प्रवृति की महिला थीं और साथ ही वेदों व पुराणों में बहुत रूचि रखती थीं।
शैक्षिक जीवन की शुरूआत (Education of Mahadevi Verma):-
महादेवी वर्मा जी ने अपने शैक्षिक जीवन की शुरूआत इंदौर से हुई और उस समय बाल विवाह का प्रचलन जारी था, इसी कारण से सन् 1916 में उनके बाबा श्री बाँके विहारी ने बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से इनका बचपन में ही विवाह करवा दिया और उस वक्त इनके पति मात्र 10वीं कक्षा की पढ़ई कर रहे थे। इलाहबाद जिले के क्रास्थवेट कॉलेज में Admission के बाद वह Girls Hostle में रहीं और महादेवी वर्मा जी ने मात्र 7 वर्ष की आयु में ही कविताएं व लेख लिखना शुरू कर दिया। जिसके बाद से धीरे-धीरे उनके द्वारा लिखी गयी कवितायेँ व लेख पाठकों के मन में काफी प्रचलित होने लगीं। मैट्रिक की परिक्षा पास करने के कुछ दिनों बाद ही महादेवी जी एक अच्छे कव्य रचनाकारों में से एक में गिनी जाने लगी।
Allahabad University से महादेवी वर्मा जी ने M.A की परीक्षा Sanskrit Subject में सन् 1932 में पास की और इस दौरान उनकी रचनाओं में से नीहार व रश्मि कविताओं का संग्रह प्रकाशित हो चुका था। महादेवी वर्मा जी ने अपने कव्यों की रचना में वेदना और अनुभूतियों को बहुत गहराई से चित्रण प्रस्तुत किया है। महादेवी जी के प्रमुख काव्य संग्रहों (Mahadevi Verma Poems) में रश्मि, नीरजा और नीहार शामिल हैं। न ही केवल काव्य की रचनाओं में बल्कि गद्यांशों के साहित्य की रचना में भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया है। उनके प्रमुख गद्यांशों में कुछ विशेष साहित्य इस प्रकार शामिल हैं, जैसे कि अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, मेरा परिवार, पथ के साथी और शृंखला की कड़ियाँ आदि सम्मिलित हैं।
श्रीमती वर्मा जी को विवाहित जीवन से कुछ इस प्रकार का कोई खास लगाव न था। सामान्य पति-पत्नी के रूप में दोनों के बीच सम्बंध अच्छे ही रहे। दोनों में कभी-कभी पत्राचार के माध्यम से बात-चीत होती थी। लेकिन केवल ऐसा नहीं था कभी-कभी श्री वर्मा जी इलाहाबाद उनसे मिलने के लिए भी आते थे। श्री वर्मा ने रचनाकार महादेवी जी के कई बार कहने पर भी दूसरा विवाह का विचार अपने मन में नहीं लाया। महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यासी जैसा जीवन था क्योंकि उन्होंने अपने जीवन काल में श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा जो कि बहुत ही आश्चर्य करने वाली बात है। पति की मृत्यु सन् 1966 के बाद महादेवी जी स्थाई रूप से इलाहाबाद में ही रहने लगीं और अपना जीवन व्यापन करने लगीं।
महादेवी वर्मा का निधन :-
11 सितम्बर सन् 1987 को महादेवी वर्मा का निधन इलाहबाद में हुआ। महादेवी वर्मा जी ने अपने जीवन के करियर की शुरूआत अध्यापिका के रूप में शुरू की। जिसमें वह अध्यापिका पद के साथ आखिरी समय तक प्रयाग महिला विश्वपीठ की प्राध्यानाध्यापक भी रहीं। महादेवी वर्मा जी ने महिला समाज सुधारक के रूप में अनेकों अनेकों प्रकार के सहयोग के रीप में कई काम किये। हमारे समाज के लिए सबसे मुख्य बात तो यह है कि सबसे पहले महादेवी वर्मा जी ने ही महिला कवि सम्मेलन की शुरुआत की थी। हमारे देश भारत में पहली बार महिला कवि सम्मेलन श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान जी की अध्यक्षता में हुआ था।
महादेवी वर्मा जी की कुछ चमत्कारी कविताएं:-
1. "मिटने का अधिकार"
वे मुस्काते फूल, नहीं,
जिनको आता है
मुरझाना।
वे तारों के दीप, नहीं,
जिनको भाता है
बुझ जाना।
वे सूने से नयन,नहीं,
जिनमें बनते आँसू
मोती।
वह प्राणों की
सेज,नही,
जिसमें बेसुध
पीड़ा, सोती।
वे नीलम के मेघ, नहीं,
जिनको है घुल
जाने की चाह।
वह अनन्त रितुराज,नहीं,
जिसने देखी जाने
की राह।
ऎसा तेरा लोक, वेदना,
नहीं,नहीं जिसमें अवसाद।
जलना जाना नहीं, नहीं,
जिसने जाना मिटने
का स्वाद।
क्या अमरों का
लोक मिलेगा,
तेरी करुणा का
उपहार।
रहने दो हे देव!
अरे,
यह मेरे मिटने क
अधिकार।
2. "जाने किस जीवन की
सुधि ले"
जाने किस जीवन की
सुधि ले।
लहराती आती
मधु-बयार,
रंजित कर ले यह
शिथिल चरण, ले नव अशोक का अरुण राग।
मेरे मण्डन को आज
मधुर, ला रजनीगन्धा का पराग,
यूथी की मीलित
कलियों से।
अलि, दे मेरी कबरी सँवार,
पाटल के सुरभित
रंगों से रँग दे हिम-सा उज्जवल दुकूल।
गूँथ दे रशमा में
अलि-गुंजन से पूरित झरते बकुल-फूल,
रजनी से अंजन
माँग सजनि।
दे मेरे अलसित
नयन सार,
तारक-लोचन से
सींच सींच नभ करता रज को विरज आज।
बरसाता पथ में
हरसिंगार केशर से चर्चित सुमन-लाज,
कंटकित रसालों पर
उठता।
है पागल पिक
मुझको पुकार,
लहराती आती मधु-बयार।।
3. “क्या पूजन क्या अर्चन रे”
‘क्या पूजन क्या अर्चन रे।
उस असीम का सुंदर
मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे,
मेरी श्वासें करती
रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे।
पद रज को धोने
उमड़े आते लोचन में जल कण रे,
अक्षत पुलकित रोम
मधुर मेरी पीड़ा का चंदन रे।
स्नेह भरा जलता
है झिलमिल मेरा यह दीपक मन रे,
मेरे दृग के तारक
में नव उत्पल का उन्मीलन रे।
धूप बने उड़ते जाते
हैं प्रतिपल मेरे स्पंदन रे,
प्रिय प्रिय जपते अधर ताल देता पलकों का नर्तन रे।।
4. "ठाकुर जी भोले
हैं"
ठंडे पानी से
नहलातीं।
ठंडा चंदन इन्हें
लगातीं,
इनका भोग हमें दे
जातीं।
फिर भी कभी नहीं
बोले हैं,
माँ के ठाकुर जी
भोले हैं।।
महादेवी वर्मा जी की महत्वपूर्ण जीवनशैली को पढ़ें-: ||महादेवीवर्मा ||
कुछ प्रमुख रोचक कवितायेँ यहाँ संगठित हैं:- ||Mahadevi verma poems in hindi||