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मानवती

14 फरवरी 2022

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रूठ गई अबकी पावस के पहले मानवती मेरी

की मैंने मनुहार बहुत , पर आँख नहीं उसने फेरी।

वर्षा गई, शरत आया, जल घटा, पुलिन ऊपर आये,

बसे बबूलों पर खगदल, फुनगी पर पीत कुसुम छाये।

आज चाँदनी देख, न जानें, मैं ने क्यों ऐसे गाया-

"अब तो हँसो मानिनी मेरी, वर्षा गई, शरत आया।

तारों के श्रुति-फूल मनोहर,

कलियों का कंकन सुन्दर है।

मानिनि! यह तो चीर तुम्हारा,

तना हुआ जो नीलाम्बर है।

चलो, करो शृंगार, बुलाती तुम्हें खंजनों की टोली,

आमन्त्रित कर रही विपिन की कली तुम्हारी हमजोली।

उलर रही मंजरी कास की, हवा भूमती आती है,

राशि-राशि अवली फूलों की एक ओर झुक जाती है।

उगा अगस्त्य, उतर आया सरसी में निरमल व्योम सखी,

झलमल-झलमल काँप रहे हैं जल में उडु औ’ सोम सखी।

दिन की नई दीप्ति; हरियाली-

पर नूतन शोभा छाई है,

पावस-धौत धरा पर, मानों,

चढ़ी नई यह तरुणाई है।

आज खेलने नहीं चलोगी रानी, कासों के वन में?"

बोली कुछ भी नहीं, लोभ उपजा न मानिनी के मन में।

"रानी, आधी रात गई है,

घर है बन्द, दीप जलता है;

ऐसे समय, रूठना प्यारी का

प्रिय के मन को खलता है।

मना रहा, ‘आनन्द-सूत्र में ग्रन्थि डाल रोओ न लली!

ये मधु के दिन, इन्हें अकारण रूठ-रूठ खोओ न लली!

तुम सखि, इन्द्रपरी के तन में सावित्री का मन लाई,

ताप तप्त मरु में मेरे हित शीत-स्निग्ध जीवन लाई।

जीवन के दिन चार, अवधि उससे भी अल्प जवानी की,

उस पर भी कितनी छोटी निशि होती प्रणय-कहानी की?

हम दोनों की प्रथम रात यह, आज करो मत मान प्रिये।

मिट न सकेगी कसक कभी, यदि यों ही हुआ विहान प्रिये।’

रानी, यह कैसी विपत्ति है?

जिस पर बीते, वही बखाने।

प्रिये, मन अपना तज कर द्रुत

उस मानिनि को चलो मनाने।

चलो शीघ्र, पौ फटे नहीं, उग जाय न कहीं अरुण रेखा।"

मानवती ने भ्रू समेट कर मेरी ओर तनिक देखा।

"प्रासादों से घिरी कुटी में

चिन्ता-मग्न खड़ी कविजाया

कोस रही वाणी के सुत को-

‘टका सत्य है औ’ सब माया।

गहनों से शोभा बढ़ती है, उदरपूर्ति है अन्नों से।

तुम्हें, न जानें क्या मिलता लिपटे रहने में पन्नों से?

सुस्थिर हो दो बात करें, यह भी बाकी अरमान मुझे,

ऐसी क्या कुछ दे रक्खी, चाँदी-सोने की खान मुझे?’

गिरती कठिन गाज-सी सिर पर,

कवि का हृदय दहल जाता है;

आँसू पी, बरबस हँस-हँस कर

प्राण-प्रिया को समझाता है-

‘बना रखूँ पुतली दृग की, निर्धन का यही दुलार सखी!

स्वप्न छोड़ क्या पास, तुम्हारा जिससे करूँ सिंगार सखी?

कहाँ रखूँ? किस भाँति? सोच यह तड़पा करता प्यार सखी!

नयन मूँद बाँहों में भर लेता आखिर लाचार सखी!

घास-पात की कुटी हमारी,

किन्तु, तुम्हीं इसकी रानी हो;

क्या न तुम्हें सन्तोष, किसी

कवि की वरदा तुम कल्याणी हो?

जलती हुई धूप है तो आँगन में वट की छाँह सखी!

व्यजन करूँ, सोओ सिर के नीचे ले मेरी बाँह सखी!

जरा पैठ मेरे अन्तर में सुनो प्रणय-गुंजार सखी!

देखो, मन में रचा तुम्हारे हित कैसा संसार सखी!"

यह अचरज मानिनि, तो देखो,

क्षुधा सौंत भोली कविता की;

उलझ रही मकड़ी-जाली में

ज्योति परम पावन सविता की।

कलियाँ हृदय चीर टहनी का खिलने को अकुलाती हैं,

सह सकतीं न जलन, बाहर आते-आते जल जाती हैं।

घूम रही कल्पना अकेली

जग से दूर इन्द्र के पुर में;

कविजाया ने स्वर्ग न देख

बसता जो प्रियतम के उर में।

अन्तर्दीप्त रूप निज प्रिय का

ग्रामवधू कैसे पहचाने?

वाणी भी भिक्षुणी जगत में,

वह सीधी-भोली क्यों माने?

जीवन की रसवृष्टि (पंक्ति कविवर की) क्यों चाँदी न हुई?

कविजाया कहती, लक्ष्मी क्यों कविता की बाँदी न हुई?

खोज रही आनन्द कल्पना

दूब, लता गिरिमाला में,

कल्पक के शिशु झुलस रहे हैं

इधर पेट की ज्वाला में।

जिसके मूर्त्त स्वप्न भूखे हों, वह गायक कैसे गाए?"

मनवती चुप रही, दृगों में करुणा के बादल छाए।

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रचनाएँ
रसवन्ती
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रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये।
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सूखे विटप की सारिके

14 फरवरी 2022
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रसवन्ती

14 फरवरी 2022
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अरी ओ रसवन्ती सुकुमार ! लिये क्रीड़ा-वंशी दिन-रात पलातक शिशु-सा मैं अनजान, कर्म के कोलाहल से दूर फिरा गाता फूलों के गान। कोकिलों ने सिखलाया कभी माधवी-कु़ञ्नों का मधु राग, कण्ठ में आ बैठी अज

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भ्रमरी

14 फरवरी 2022
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दाह की कोयल

14 फरवरी 2022
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दाह के आकाश में पर खोल, कौन तुम बोली पिकी के बोल? दर्द में भीगी हुई-सी तान, होश में आता हुआ-सा गान; याद आई जीस्त की बरसात, फिर गई दृग में उजेली रात; काँपता उजली कली का वृन्त, फिर गया दृग में

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गीत-अगीत

14 फरवरी 2022
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गीत, अगीत, कौन सुंदर है? गाकर गीत विरह की तटिनी वेगवती बहती जाती है, दिल हलका कर लेने को उपलों से कुछ कहती जाती है। तट पर एक गुलाब सोचता, "देते स्‍वर यदि मुझे विधाता, अपने पतझर के सपनों का

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बालिका से वधू

14 फरवरी 2022
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माथे में सेंदूर पर छोटी दो बिंदी चमचम-सी, पपनी पर आँसू की बूँदें मोती-सी, शबनम-सी। लदी हुई कलियों में मादक टहनी एक नरम-सी, यौवन की विनती-सी भोली, गुमसुम खड़ी शरम-सी। पीली चीर, कोर में जिसक

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प्रीति

14 फरवरी 2022
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प्रीति न अरुण साँझ के घन सखि! पल-भर चमक बिखर जाते जो मना कनक-गोधूलि-लगन सखि! प्रीति न अरुण साँझ के घन सखि! प्रीति नील, गंभीर गगन सखि! चूम रहा जो विनत धरणि को निज सुख में नित मूक-मगन सखि! प्री

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नारी

14 फरवरी 2022
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खिली भू पर जब से तुम नारि, कल्पना-सी विधि की अम्लान, रहे फिर तब से अनु-अनु देवि! लुब्ध भिक्षुक-से मेरे गान। तिमिर में ज्योति-कली को देख सुविकसित, वृन्तहीन, अनमोल; हुआ व्याकुल सारा संसार, किया

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अगुरु-धूम

14 फरवरी 2022
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अन्तर्वासिनी

14 फरवरी 2022
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अधखिले पद्म पर मौन खड़ी तुम कौन प्राण के सर में री? भीगने नहीं देती पद की अरुणिमा सुनील लहर में री? तुम कौन प्राण के सर में ? शशिमुख पर दृष्टि लगाये लहरें उठ घूम रही हैं, भयवश न तुम्हें छू

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पावस-गीत

14 फरवरी 2022
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दूर देश के अतिथि व्योम में छाए घन काले सजनी, अंग-अंग पुलकित वसुधा के शीतल, हरियाले सजनी! भींग रहीं अलकें संध्या की, रिमझिम बरस रही जलधर, फूट रहे बुलबुले याकि मेरे दिल के छाले सजनी! किसका म

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सावन में

14 फरवरी 2022
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जेठ नहीं, यह जलन हृदय की, उठकर जरा देख तो ले; जगती में सावन आया है, मायाविन! सपने धो ले। जलना तो था बदा भाग्य में कविते! बारह मास तुझे; आज विश्व की हरियाली पी कुछ तो प्रिये, हरी हो ले। नन्

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पुरुष-प्रिया

14 फरवरी 2022
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मैं तरुण भानु-सा अरुण भूमि पर उतरा रुद्र-विषाण लिए, सिर पर ले वह्नि-किरीट दीप्ति का तेजवन्त धनु-बाण लिए। स्वागत में डोली भूमि, त्रस्त भूधर ने हाहाकार किया, वन की विशीर्ण अलकें झकोर झंझा ने जय

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मरण

14 फरवरी 2022
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लगी खेलने आग प्रकट हो थी विलीन जो तन में; मेरे ही मन के पाहुन आये मेरे आँगन में। बन्ध काट बोला यों धीरे मुक्ति-दूत जीवन का- ‘विहग, खोलकर पंख आज उड़ जा निर्बन्ध गगन में।’ पुण्य पर्व में आज

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आश्वासन

14 फरवरी 2022
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तृषित! धर धीर मरु में। कि जलती भूमि के उर में कहीं प्रच्छन्न जल हो। न रो यदि आज तरु में सुमन की गन्ध तीखी, स्यात, कल मधुपूर्ण फल हो। नए पल्लव सजीले, खिले थे जो वनश्री को मसृण परिधान देकर; ह

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प्रभाती

14 फरवरी 2022
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रे प्रवासी, जाग , तेरे देश का संवाद आया। भेदमय संदेश सुन पुलकित खगों ने चंचु खोली; प्रेम से झुक-झुक प्रणति में पादपों की पंक्ति डोली; दूर प्राची की तटी से विश्व के तृण-तृण जगाता; फिर उदय की

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कवि

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ऊषा भी युग से खड़ी लिए प्राची में सोने का पानी, सर में मृणाल-तूलिका, तटी में विस्तृत दूर्वा-पट धानी। खींचता चित्र पर कौन? छेड़ती राका की मुसकान किसे? विम्बित होते सुख-दुख, ऐसा अन्तर था मुकुर-

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विजन में

14 फरवरी 2022
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गिरि निर्वाक खड़ा निर्जन में, दरी हृदय निज खोल रही है, हिल-डुल एक लता की फुनगी इंगित में कुछ बोल रही है। सांझ हुई, मैं खड़ा दूब पर तटी-बीच कर देर रहा हूँ; गहन शान्ति के अंतराल में डूब-डूब कुछ

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संध्या

14 फरवरी 2022
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जीर्णवय अम्बर-कपालिक शीर्ण, वेपथुमान पी रहा आहत दिवस का रक्त मद्य-समान। शिथिल, मद-विह्वल, प्रकंपित-वपु, हृदय हतज्ञान, गिर गया मधुपात्र कर से, गिर गया दिनमान। खो गई चूकर जलद के जाल में मद-धार; न

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अगेय की ओर

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गायक, गान, गेय से आगे मैं अगेय स्वन का श्रोता मन। सुनना श्रवण चाहते अब तक भेद हृदय जो जान चुका है; बुद्धि खोजती उन्हें जिन्हें जीवन निज को कर दान चुका है। खो जाने को प्राण विकल है चढ़ उन पद-प

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संबल

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सोच रहा, कुछ गा न रहा मैं। निज सागर को थाह रहा हूँ, खोज गीत में राह रहा हूँ, पर, यह तो सब कुछ अपने हित, औरों को समझा न रहा मैं। वातायन शत खोल हृदय के, कुछ निर्वाक खड़ा विस्मय से, उठा द्वार-प

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प्रतीक्षा

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अयि संगिनी सुनसान की! मन में मिलन की आस है, दृग में दरस की प्यास है, पर, ढूँढ़ता फिरता जिसे उसका पता मिलता नहीं, झूठे बनी धरती बड़ी, झूठे बृहत आकश है; मिलती नहीं जग में कहीं प्रतिमा हृदय के

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रहस्य

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तुम समझोगे बात हमारी? उडु-पुंजों के कुंज सघन में, भूल गया मैं पन्थ गगन में, जगे-जगे, आकुल पलकों में बीत गई कल रात हमारी। अस्तोदधि की अरुण लहर में, पूरब-ओर कनक-प्रान्तर में, रँग-सी रही पंख उड

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शेष गान

14 फरवरी 2022
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संगिनि, जी भर गा न सका मैं। गायन एक व्याज़ इस मन का, मूल ध्येय दर्शन जीवन का, रँगता रहा गुलाब, पटी पर अपना चित्र उठा न सका मैं। विम्बित इन में रश्मि अरुण है, बाल ऊर्म्मि, दिनमान तरुण है, बँध

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मानवती

14 फरवरी 2022
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रूठ गई अबकी पावस के पहले मानवती मेरी की मैंने मनुहार बहुत , पर आँख नहीं उसने फेरी। वर्षा गई, शरत आया, जल घटा, पुलिन ऊपर आये, बसे बबूलों पर खगदल, फुनगी पर पीत कुसुम छाये। आज चाँदनी देख, न जानें, मै

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कालिदास

14 फरवरी 2022
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समय-सिन्धु में डूब चुके हैं मुकुट, हर्म्य विक्रम के, राजसिद्धि सोई, कब जानें, महागर्त में तम के। समय सर्वभुक लील चुका सब रूप अशोभन-शोभन, लहरों में जीवित है कवि, केवल गीतों का गुंजन। शिला-लेख मुद

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गीत-शिशु

14 फरवरी 2022
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आशीर्वचन कहो मंगलमयि, गायन चले हृदय से, दूर्वासन दो अवनि। किरण मृदु, उतरो नील निलय से। बड़े यत्न से जिन्हें छिपाया ये वे मुकुल हमारे, जो अब तक बच रहे किसी विध ध्वंसक इष्ट प्रलय से। ये अबोध कल्पक

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कत्तिन का गीत

14 फरवरी 2022
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कात रही सोने का गुन चाँदनी रूप-रस-बोरी; कात रही रुपहरे धाग दिनमणि की किरण किशोरी। घन का चरखा चला इन्द्र करते नव जीवन दान; तार-तार पर मैं काता करती इज्जत-सम्मान। हरी डार पर श्वेत फूल, यह तूल-वृक्

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गीत

14 फरवरी 2022
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उर की यमुना भर उमड़ चली, तू जल भरने को आ न सकी; मैं ने जो घाट रचा सरले! उस पर मंजीर बजा न सकी। दिशि-दिशि उँडेल विगलित कंचन, रँगती आई सन्ध्या का तन, कटि पर घट, कर में नील वसन; कर नमित नयन चुपच

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