निर्वाचन आयोग के विधान सभा 2017 के लिए पांच राज्यों में चुनाव तिथियों के घोषणा करते ही आचार संहिता लागू हो गई और ठंड के मौसम में भी सियासी पारा अचानक बढ़ गया और एक्जिट पोल का खेल भी शुरू हो गया। सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की कुल 403 सीटों के लिए सात चरणों में मतदान होगा और नोटबंदी के साथ ही निर्वाचन आयोग भी प्रत्याशियों को कैसलेश चुनाव के लिये निर्देशित कर रहा है। सभी राजनीतिक दल अपने अपने घोषणा पत्रों के माध्यम से जनता के साथ वादा करते हैं और सत्ता में आने के बाद उन वादों को पूरा करने का विश्वास भी दिलाते हैं, चुनाव आयोग ने भी कहा है कि अगर कोई दल घोषणा पत्र में ऐसी घोषण करता है जो असंवैधानिक हो या वह उसे पूरा नही करता है तो उस दल के उपर कानुनी कार्यवाही की जायेगी। अभी तक घोषणा पत्र दलों के लिये चुनाव में वोटरों को लुभाने के लिय केवल एक दस्तावेज का काम करता था लेकिन आज इन्टरनेट और सोशल मिडिया के माध्यम से आम आदमी के बीच भी जागरूकता बढ़ी है खासकर युवाओं में, वे अब अपने अधिकारों के प्रति सजग हुये है।
इन सभी के बावजूद चुनाव के दौरान जनता के मुख्य मुद्दे जैसे गुणवत्ता युक्त शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क, रोजगार, इन्टरनेट और सबसे जरूरी विकास या प्रशासन में उनकी भागीदारी आदि गायब हैं, ज्यादातर दल पेंशन, भत्ता, अनुदान आदि की बात करतें है लेकिन जनता को कोई अधिकार नही देना चाहता। जिस प्रकार से केन्द्र और राज्य सरकार है उसी प्रकार से गॉवों में गॉव की सरकार यानि ग्रामसभा और ग्राम पंचायत है। चुनावों से पंचायत गायब हो जाती है और जब इनके अधिकारों की बात की जाती है तो सभी दल मौन हो जाते हैं। जिस भारतीय संविधान के तहत यह विधान सभा के चुनाव हो रहे है उसी संविधान ने 73वें और 74वें संशोधन के माध्याम से जनता को प्रशासन में सीधे भागीदार बनाया है। पारंपरिक तरीके से आदर्श चुनाव आचार संहिता भी लागू होगी । लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि चुनाव में धन बल ,बाहुबल का वर्चस्व “मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की ” कि लोकोक्ति को चरितार्थ करता रहा है। दागी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने का मामला उनके विरुद्ध आपराधिक मामलों के लंबित होने की बात कहकर टाला जाता रहा है। नतीजतन तमाम संगीन अपराधों के आरोपी चुनाव लड़ते हैं और चुनाव जीत कर “माननीय” बन जाते हैं। संगीन अपराधों के आरोपियों को टिकट देने के खेल में सभी पार्टियाँ शामिल होती हैं। टिकट देना राजनैतिक दलों की सियासी मजबूरी हो सकती है ,उनकी सियासी रणनीति हो सकती है परन्तु हम मतदाता भी इस राजनैतिक कोढ़ को पालते पोसते रहे हैं। सियासी सौदागरों ने अपराधियों ,माफियाओं को टिकट देने का अपराध किया है तो हम मतदाताओं ने उनको जीता कर इस अपराध को बढ़ावा देने का अपराध किया है।जिस दिन मतदाता ऐसे अवांछित तत्वों को नकारना शुरू करेगा सियासी सौदागर इनको टिकट देना बंद करेंगे । याद कीजिये २०१४ के लोकसभा चुनाव के बाद मौजूदा प्रधान मंत्री का संसद की सीढियों पर मत्था टेक नाटक और सदन में दिया गया भाषण, जिसमे उन्होंने कहा था कि शपथ ग्रहण के बाद लोकतंत्र के पवित्र मंदिर को दागी सांसदों से मुक्त करना उनका पहला काम होगा। कथनी के धरातल पर हुआ इसके उलट भाजपा में शताधिक दागी सांसदों की फ़ौज बनी हुई है जिनमे से कुछ मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य भी हैं । आज खुद मोदी की सियासी चुनरी में सहारा समूह और बिडला से बहैसियत मुख्य मंत्री गुजरात रिश्वत लेने सहित तमाम दाग नजर आ रहे जिसे भगवा पलटन “ मोदी जी गंगा जैसे पवित्र हैं “ का राग अलाप कर धोने की कोशिस कर रही है । इस सियासी कोढ़ से निजात पाने के लिए हमारे पास दो ही रास्ते हैं ।पहला यह कि चुनाव आयोग ऐसे प्रतिबंधात्मक नियम लागु करे की जब तक अदालत निर्दोष सिद्ध न कर दे कोई भी दागी चुनाव नहीं लड़ सकता है । दूसरा रास्ता है मतदाताओं में जागरूकता का ,मतदाता दागियों को ,दागियों को टिकट देने बाले दलों को अपनी मतदान की ताकत से नकारना शुरू करे।
चुनाव में धन बल के बढ़ते वर्चस्व को लगाम देना चुनाव आयोग के लिए एक कठिन चुनौती रही है । पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव में इस मोर्चे पर भी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा होनी है।उसे यह सुनिश्चित करना होगा की प्रधान मंत्री ने अपनी हालिया रैलियों में मतदान को प्रभावित करने की मंशा से समाज के विभिन्न तबकों के खातों में धन भेजने की जो घोषणाएँ की हैं उन पर सख्ती से रोक लगाये और इसकी सतत निगरानी भी करे । निष्पक्ष मतदान के लिए चुनाव आयोग को मीडिया के दुरूपयोग की रोकथाम के मोर्चे पर भी एक कठिन अग्नि परीक्षा देनी है । धन बल से मीडिया के दुरूपयोग को लगाम देने की भी अग्नि परीक्षा चुनाव को देनी है। जिसमे २०१४ के लोक सभा चुनाव में वह पूर्णतया फ्लाप सिद्ध हुआ। मतदान बाले दिन भी भाजपा की रैलियों का सीधा प्रसारण होता रहा ,खबरिया चैनलों के कारकून मतदान के लिए कतारबद्ध लोगों को भाजपा के पक्ष में मतदान के लिए प्रेरित करने का बेशर्म प्रदर्शन करते रहे । सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया फैसले पर सख्ती से अमल सुनिश्चित करना भी चुनाव आयोग के लिए एक कड़ी चुनौती होगी जिसमे कहा गया है कि वोट मांगने के लिए जाति और धर्म का प्रयोग नहीं किया जा सकता । सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की सबसे ज्यादा धज्जियाँ उत्तर प्रदेश में उडनी तय है। चुनाव आयोग को देखना होगा की सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की अवहेलना न हो । चुनाव प्रक्रिया संपन्न होने के बाद ही यह तय होगा की चुनाव आयोग निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करा पाने की अग्नि परीक्षा में सफल होता है या नहीं
लेखक – उत्तम जैन ( विद्रोही )
Vidrohi Avaz मेरे जेहन मे उठते विचार ओर विधानसभा चुनाव की घोषणा - Vidrohi Avaz