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महिलाओं के संस्कारी होने की मांग करना क्या स्त्रीयों की स्वतंत्रता में बाधक है ??

22 फरवरी 2017

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मानव जाति के इतिहास में विभिन्न प्रकार की विभिन्नता की कहानी जुड़ी हुयी है, इस इतिहास में हमने बहुत प्रकार के वर्ग निर्मित किए, जैसे गरीब का, अमीर का, धन के पद के अभाव पर और आश्चर्य की बात यह है कि इस समाज ने जो स्त्री और पुरुष के बीच जो वर्ग का निर्माण किया यह एक अनोखा और अद्भुत रहा और इस भिन्नता को वर्ग बनाना मनुष्य की शेतानी कही जा सकती है। क्योंकि हजारों वर्ष पहले से ही स्त्री का शोषण का इतिहास रहा है। क्योकि पुरुष ने ही सारे कानून निर्मित किये है और शुरु से ही पूरुष शक्तिशाली था उसने स्त्री पर जो भी थोपना चाहा थोप दिया । और जब तक स्त्री पर से गुलामी नही उठती दुनिया से गुलामी नही मिट सकती चाहे कहने की बात क्यो न हो की भारत 68 साल पहले ही आजाद हो गया। ये अलग बात है कि हमारी सरकार गरीबी और अमीरी के फासले मिटाने मे सक्षम हो जाए लेकिन स्त्री और पुरुष के बीच शोषण का जाल और इनके बीच फासलो की कहानी इतनी लम्बी हो गयी है कि स्वयं स्त्री और पुरुष दोनो ही भूल गये है। पुरुष और स्त्री के बीच फासले और असमानता किस-किस रुप में खड़ी हुई है? भिन्नता सुनिश्चित है भिन्न होनी ही चाहिए क्योंकि यही ही स्त्री,पुरुष को अलग-अलग व्यक्तित्व देते है लेकिन भिन्नता असमानता में बदल गया है। इसीलिए सारी स्त्रीयाँ भिन्नता को तोड़ने में लग गयी है ताकी वे ठीक पुरुषों जैसी दिखने लगे शायद वह इस सोच में है कि इस भाती असमानता भी टूट जाएगी धीरे-धीरे कपड़े एक जैसे होते चले गये। लेकिन कपड़ो के फासले से भिन्नता नही मिट जाएगीं यह एक गहरी बात है कपड़ो से कुछ फर्क नही पड़ने वाला नही है क्योंकि भेद मिटाने से समाज द्वारा निर्माण किया गया स्त्री और पुरुष का वर्ग नही मिट सकता क्योकि पुरुष इस का आदि हो गया है। भारत में आज तक स्त्री पुरुषो में बराबरी का स्तर नहीं आ पाया , स्त्रीयों को आज भी असमानता की भावना का सामना करना पड़ रहा है आज भी स्त्रीयों को समाज में दोयम दर्जे का स्थान ही प्राप्त है. अधिकाँश स्थानों पर महिलाओं का यही हाल है , महिलाओं के स्वास्थ्य एवं शिक्षा की स्थिति बहुत ही खराब है घरेलु वातावरण में रोज़ ही वो किसी न किसी दुर्व्यवहार का सामना करती ही रहती हैं. आज भी महिलाओं को घर से बाहर जाकर काम करने में एक बड़े पुरुष वर्ग को आपत्ति है. पर बढ़ते वैश्वीकरण के दबाव में इन सब शोषित और कुपोषित मातृत्व वर्ग के बीच एक ऐसा महिला वर्ग भी उपजा जो की इन सब असमानताओ , कुपरिस्थितियो और समस्याओं से पूर्णतया मुक्त था अब इनमे भी दो तरह की महिलाए थी एक जो पारिवारिक संस्कार , सद्चरित्रता और सदभावना से ओत प्रोत थीं वही दूसरी जो की पारिवारिक संस्कार , सद्चरित्र इत्यादि बातो से पूर्णतया दूर एवं इन सुसंस्कारो को अपना बंधन मात्र मानती थी. पहला वर्ग तो अपने सदभावना के कारण अपने अन्य शोषित बहनों के मुक्ति का मार्ग ढूढ़ने लगी और अपने परिवार को भी संस्कारी बनाये रखा अतः उन परिवार से निकलने वाले संस्कारी बालक , बालिकाए उनके सुविचारो के वाहक बन गए और महिला मुक्ति के मार्ग भी.दूसरी तरफ वे महिलाए थी जो की न तो संस्कार जानती थी न ही सद्चरित्र उनके लिए अपने संस्कृति अपनी परम्पराओं को तोड़ना ही स्वतंत्रता हो गया और ये भी आंकलन नहीं की की क्या सही है क्या गलत ? जो भी पश्चिम से मिला सब सर्वश्रेष्ठ है इस भावना से अपना विरोध और दूसरो को गले लगाने का एक नया परंपरा शुरू हो गया ये महिलाए स्वयं तो संस्कारी थी ही नहीं सो इनके बच्चे को भी इन्ही के रास्ते पर जाना तय था.

ऐसी कुविचारी , निकृष्ट ,कुचरित्र महिलाओं ने कभी भी अपने महिला समाज का उठाने में कोई भूमिका नहीं अपनाई बल्कि अपने परिवार में असंस्कारी बालक बालिकाओं को रोपित कर समाज की स्थिति और खराब करने में जिम्मेदारी निभायी. पुरुषो से ज्यादा महिलाओं को संस्कार की जरुरत होती है पुरुषो से ज्यादा महिलाओं को नैतिक होने की जरुरत होती है, क्योकि महिलाए ही परिवार की आधार होती है. वो ही बच्चो की प्रथम गुरु होती है, वही बच्चो को संस्कारी बनाती है. और यह एक सामान्य दृष्टि की बात है की हम बहुधा देखते है की जिस घर में पिता निकृष्ट , शराबी या नीच कोटि का निकल जाता है वह यदि माता ठीक होती है तो बच्चे अपने पिता के दुर्गुणों से दूर गुणी और बुद्धिमान ही होते है जबकि किसी परिवार के सभी पुरुष ठीक हो लेकिन महिला खराब हो गयी तो निश्चित ही उस परिवार की पूरी अगली पीढीयां खराब हो जाती है.यदि प्रकृति ने माँ को परिवार का आधार बनाया है तो , उस माँ को संस्कारी होने की मांग करना क्या स्त्रीयों की स्वतंत्रता में बाधक है ?? बहुत सारी पश्चिमी मानसिकता से ग्रसित महिलाए इसे एक घटिया सोच करार देती है और पूछती है की आखिर संस्कार की जिम्मेवारी महिलाओं पर पुरुषो से ज्यादा क्यों ?? क्या इस प्रश्न का कोई जबाब है??

जो प्रश्न प्रकृति से पूछा जाना चाहिए वो प्रश्न ये महिलाए पुरुषो से जानना चाहती हैं.

अब कोई पुरुष यदि यह पूछे की बच्चे ज्यादा प्रेम माँ से क्यों करते है पिता से क्यों नहीं , स्नेह दिखाने की जीतनी कला स्त्रीयों को प्राप्त है उतनी पुरुषो को क्यों नहीं ??? बच्चो को गर्भ धारण करने की शक्ति सिर्फ महिलाओं को पुरुषो को क्यों नहीं ?? बच्चो के शुरूआती भरण पोषण की शक्ति केवल महिलाओ को क्यों प्राप्त है पुरुषो को क्यों नहीं ??

क्या हम प्रकृति प्रदत्त गुणों पर टकराकर कुछ प्राप्त कर सकते है?

कुछ लोगों ने कहा की स्त्रीयों को मर्यादित कपडे पहनना चाहिए मीडिया में भयंकर विरोध इस मुद्दे पर होता ही रहता है. स्त्री आखिर अपने आप को क्या समझती है यह बात हम उसके वस्त्रो से ही निर्धारित करते है , हमारे देश की परंपरा और संस्कृति में उसे भी आत्मा का दर्ज़ा प्राप्त है न की केवल नीरा शरीर का. जबकि पश्चिम में और अरब की कुसंस्कृति में उन्हें केवल शरीर का ही दर्ज़ा प्राप्त है एक उसे दिखाने में लगा रहता है तो दूसरा उसे ढकने में. पर क्या यही सोच हमारे समाज में आज नहीं फ़ैल गयी कुछ लोग है जो पर्दा प्रथा को जारी रखना चाहते है तो कुछ उसे नग्नता के उस स्तर पर ले जाने की फिराक में है जहाँ सभ्यों का सर नीचा करके जमीन देखना ही बचाव के एक मात्र लगता है. क्या ये दोनों मार्ग उचित है??

निश्चित ही मेरे मत से नहीं …. यदि स्त्री केवल शरीर नहीं तो उसे क्यों ढकना और क्यों दिखाना? उसे मर्यादित ढंग से रहना ही चाहिए. स्त्रीयों से मर्यादित कपडे की उम्मीद करने पर , पश्चिमी विचारों से ओत प्रोत महिलाए कहने लगती हैं की ये महिलाओं की स्वतंत्रता का हनन है. आखिर वो कौन सी मानसिकता है जिसके कारण महिलाए जब मर्यादित कपडे पहनती है तो उन्हें ऐसा लगता है मानो उनकी स्वतंत्रता हर ली गयी हो. क्या नग्नता के उचाई पर ही पहुच कर स्वतंत्रता का बोध हो सकता है. कुचरित्र और असंस्कारी महिलाए ही नग्नता में स्वतंत्रता का अनुभव प्राप्त करती है. इसको समझने के लिए एक उदाहरण लेते है ऐसी कल्पना करते है की एक संस्कारी परिवार की बालिका को एक अलग स्थान पर ले जाकर उसे यह कह दिया जाय की तुम जो करना चाहो कर लो जैसा पहनना चाहो पहन लो तुम्हे कोई कुछ नहीं कहेगा तो क्या वह नग्नता का प्रदर्शन करेगी… क्या वो निर्लाज्ज़ता को अपना ध्येय चुनेगी?? निश्चित ही नहीं क्योकि उसके दिमाग में ये गन्दगी डाली ही नहीं गयी की स्त्री की स्वतंत्रता का मतलब नग्नता. हम पहले ये घटिया सोच बच्चो में रोपित करते है की शरीर का प्रदर्शन ही स्वतंत्रता है जिस कारण बाद में यह समस्या आती है की मर्यादित कपड़ो में महिलाओं को परतंत्रता का बोध होता है.

यदि वास्तव में भारत वर्ष में स्त्रीयों का विकास करना है तो उन्हें संस्कारी सद्चरित्र और मर्यादित बनाना ही पड़ेगा , क्योकि स्त्रीयां ही समाज की आधार है यदि उनका पतन होगा तो समाज जरुर अधोगति को प्राप्त होगा. ऐसी सोच भी हमारे सामने चुनौती बनकर खडी है जो की महिलाओं के स्वतंत्रता के मुख्य आन्दोलन को जिसमे उनको समाज में बराबरी का हक दिलाना ध्येय को खीच कर ऐसे निकृष्ट मार्ग पर ले जा रहा है जहा पर महिलाए खुद अपने आपको और ज्यादा खराब स्थिति में पाएंगी ......उत्तम जैन (विद्रोही )

उत्तम जैन (विद्रोही ) ब्लॉग: महिलाओं के संस्कारी होने की मांग करना क्या स्त्रीयों की स्वतंत्रता में बाधक है ??
रेणु

रेणु

बहुत सारगर्भित विश्लेषण है उत्तम जी -- निश्चित रूप से आज कथित ननरी की आजादी को इसी रूप में परिभाषित किया जाता है की वे मन मर्जी का आचरण करे | लेकिन नारी के अपने सहज गुण ही उसका सबसे बड़ा सौदर्य हैं -- ये बात हर ना री को समझनी होगी और अपनी बेटी को समझानी होगी -- पाश्चात्य संस्कृति के उदंड आचरण का अनुसरण करके भारतीय नारी की पहचान तो धूमिल होनी निश्चित है | हमारी अपनी संस्कृति दुनिया में बेजोड़ है

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आचार्य तुलसी द्वारा अणुव्रत : आचार संहिता बनाई गयी जो 68 वर्ष पूर्व भविष्य को देखकर जो अणुव्रत : आचार संहिता बनाई वह आज वर्तमान मे देखा जाए सबसे जरूरी है ! ...... मैं किसी भी निरपराध प्राणी का संकल्पुर्वक वध नहीं करूँगा |आत्म हत्या नहीं करूँगा |भ्रूण हत्या नहीं करूँगा

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देना देश में जहर के बीज बोना नही है ?

2 मार्च 2017
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देना क्या देश में जहर के बीज बोना नहीं है? http://virohiawaz.blogspot.com/2017/03/blog-post.html

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वर्तमान की शिक्षा प्रणाली - मेरा दर्द

4 मार्च 2017
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देश को बदलना है तो शिक्षा का प्रारूप बदलो आज एक पुस्तक पर मेरी नजर पड़ी जिसमे लिखा था --जिस शिक्षा से हम अपने जीवन का निर्माण कर सके , मनुष्य बन सके , चरित्र गठन कर सके और विचारो का सामंजस्य कर सके वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है ... स्वामी विवेकानन्द की यह पंक्तिया

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जैन समाज कि- एक कुरीति आरती

4 मार्च 2017
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घर के कार्यों में धर्म का अनुसरण नहीं होता है, किन्तु आरती से जो जीवों का घात होता है वह धर्म के नाम पर होता है ! अतः आरती करना किसी विज्ञ और दयालु पुरुष का ध्येय नहीं हो सकता !"देव धर्मतपस्विनाम् कार्ये महति सत्यपि !जीव घातो न कर्तव्यः अभ्रपातक हेतुमान !!याने,देव, धर्म औ

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कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप

4 मार्च 2017
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मेरी हत्या न करो माँ मैं तेरा ही अंश हूँ माँ पिताजी को समझा दो माँ पिताजी को मना लो माँमुझे बहुत बार इस तरह की आवाज हर समाज की बेटियो की कानो में गूँजती है ! आप भी महसूस करे जरूर

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कडवे घूंट जीवन के ---

5 मार्च 2017
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हमारी वर्तमान दशा व दिशा सिर्फ अपने कारण से होती है इस दशा मे मुख्य कारण एक चिंता व नकारात्मक भाव है !चिंताओं का विश्लेषण किया जाए तो ४०%- भूतकाल की, ५०% भविष्यकाल की तथा १०% वर्त्तमान काल की होती है ! इस स्वीकार भाव से ही हमारे भाव बदलने शुरू होते हैं। रोग का जन्म ही नका

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नारी शक्ति - भूत - वर्तमान व भविष्य

5 मार्च 2017
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शक्ति की प्रतीक , समानता का अधिकार,कमज़ोर, हर क्षेत्र में आगे इन सभी उपमाओं का प्रयोग समय -समय पर लोग महिलाओं के विवरण देने हेतु विशेषण की तरह प्रयोग करने लगे हैं. जो भी हो यह सत्य है कि आज ही नहीं पूर्व काल से ही महिलाएं किसी भी मायने में पुरुषों से कामजोर नहीं रही है. जि

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नारी का सन्मान

8 मार्च 2017
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भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु.वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चल

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रिश्तो का महत्त्व

13 अप्रैल 2017
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रिश्तो का महत्व ---- "कोई टूटे तो उसे सजाना सिखो, कोई रूठे तो उसे मनाना सिखो, रिश्ते तो मिलते हैं मुकद्दर से, बस उसे खूबसूरती से निभाना सिखो।" जन्म के साथ ही अनेक रिश्त

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भूतकाल व् वर्तमान ... बीती ताही बिसार दे

13 अप्रैल 2017
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हममें से अधिकतर लोग क्या भूत के विलाप और भविष्य की चिन्ता में ही जीवन बिता देते है ओर वर्तमान क्षण के सुख से वंचित रह जाते हैं। हम जीवन के सौन्दर्य व आनन्द को भूल जाते हैं। यह सब हमारी मनःस्थिति के कारण होता है।हमारा दृष्टिकोण ऐसा ही होना चाहिए की हमारे पास केवल यही

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हमारा कुलभूषण जाधव दूसरा सरबजीत न बने

13 अप्रैल 2017
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जब भारत की आम जनता , राजनेता और मीडिया ईवीएम की गडबडी, और अलवर में स्थित गौरक्षकों द्वारा पहलू खां की हत्या केमामले को लेकर लीन थे उस समय एक व्यथित खबर थीपड़ोसी देश पाकिस्तान में एक निर्दोष भारतीय कुलभूषण जाधव को एजेंट बताकर फांसीकी सजा सुनाई जा रही थी.जाधव पर पाकिस्तानमे

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गुजरात: फीस नहीं भरने पर स्कूल ने सात साल के बच्चे को बनाया बंधक

16 अप्रैल 2017
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सूरत: गुजरात के सूरत शहर में एक प्राइवेट स्कूल पर एक बेहद ही सनसनीखेज आरोप लगा है, जिसमें स्कूल ने फीस बकाया होने की वजह से एक 7 साल के बच्चे को बंधक बना लिया. मामला पुलिस तक पहुंचा जिसके बाद छात्र को छुड़ाया गया. गुजरात सरकार ने प्राइवेट स्कूलों की फीस पर नियंत्रण लाने क

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सुखी बहु गाँव की

17 अप्रैल 2017
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मे मैं यदा कदा ब्लॉग लिखता हूँ ... विचारो की अभिव्यक्ति व्यक्त करता हूँ ... कहानी कभी लिखी नही प्रथम बार कोशिश की कोई शिक्षाप्रद कहानी लिखू आज की वर्तमान समस्या पर अच्छी लगे हौसला बढाये ....सभी नाम व स्थान काल्पनिक है . शीर्षक - सु

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मेरा देश महान जहा सो में अस्सी बेईमान

19 अप्रैल 2017
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हमारे देश में भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है जिससे हर भारतीय का सामना जरूर होता है.ये एक राष्ट्रीय महामारी है जिसका कारगर इलाज़ अभी तक कोई नेता कोई समाज सेवी या कोई अधिकारी भी नहीं निकाल पाया है.समाज सेवी अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में २०११ में भारत ने एक बड़ा भ्रष्टाचारविरोधी आंद

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एक किसान का सवाल सरकार से किसान का मूत्र पीना आत्मकथा उत्तम जैन ( विद्रोही ) के माध्यम से

23 अप्रैल 2017
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एक किसान का सवाल सरकार से किसान का मूत्र पीना एक आत्मकथा उत्तम जैन (विद्रोही ) के माध्यम से ---- दो तीन दिन पूर्व मेने किसान की आत्मकथा नामक एक ब्लॉग लिखा था मेरे कुछ मित्रो व प्रशंसकों ने वाह वाह भी किया मुझे वाह वाह या तारीफ करना जितना अच्छा नही लगता उससे अच्छा मुझे ल

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हिन्दी साहित्य विवेचना ओर मेरा प्रेम --

24 अप्रैल 2017
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मेरा अध्ययन वेसे कोई ज्यादा नही मगर मेरा साहित्य पढ्ना पसंदीदा विषय रहा है ! विभिन्न लेखको के साहित्य पढना मेेरा नित्यक्रम है ! मुझे हिन्दी साहित्य लिखना व पढना बहुत अच्छा लगता है ! अँग्रेजी पर मेरा अधिकार नही क्यू की मेरी शिक्षा छोटे गाव मे हिन्दी माध्यम से हुई हा

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पुस्तको से पाठकों की बढ़ती दूरी चिन्तनीय

26 अप्रैल 2017
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मेरे विचार ..

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पुस्तको से पाठकों की बढ़ती दूरी

26 अप्रैल 2017
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पुस्तकों से पाठको की बढ़ती दूरी एक चिंताजंक समस्या http://virohiawaz.blogspot.com/2017/04/blog-post_25.html

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नारी के अवदान और पीड़ा - उत्तम विद्रोहीजकी जुबानी

27 अप्रैल 2017
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भारतीय उपासना में स्त्री तत्व की प्रधानता पुरुष से अधिक मानी गई है नारी शक्ति की चेतना का प्रतीक है। साथ ही यह प्रकृति की प्रमुख सहचरी भी है जो जड़ स्वरूप पुरुष को अपनी चेतना प्रकृति से आकृष्ट कर शिव और शक्ति का मिलन कराती है। साथ ही संसार की सार्थकता सिद्ध करती है। महि

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सफलता की और कदम

29 अप्रैल 2017
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चलते रहे चलते रहे ...ग़मों के कांटे चुभते रहे,फिर भी हम चलते रहे|मिलते रहा सभी से मगर,अपने दायरों में सिमटता रहाफिर भी में चलता रहा !गिरना तो फितरत ही थी,गिर गिर के संभालता रहा |फिर भी में चलता रहा …क्या है तेरा वजूद ‘विद्रोही ’,मौसम से तुम बदलते रहे |फिर भी हम चलते रहे …म

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विश्व मजदुर दिवस ---

1 मई 2017
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मजदूरों के अन्तर्राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है - मजदूर दिवस पर शुभकामना विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस “1 मई” के दिन मनाया जाता है। किसी भी देश की तरक्की उस देश के किसानों तथा कामगारों (मजदूर / कारीगर) पर निर्भर होती है। एक मकान को खड़ा करने और सहारा देन

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उत्तम जैन (विद्रोही ) ब्लॉग: प्रकृति ओर मनुष्य

5 मई 2017
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प्रकृति और मनुष्य

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आचार्य श्री महाश्रमण अवतरण व पटोत्सव

5 मई 2017
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आचार्य श्री महाश्रमण जी के जन्मोत्सव व पटोत्सव पर खूब खूब अभिवंदना गुरुदेव के अवदान व सक्षिप्त जीवन परिचय----प्रभु स्वीकारो म्हारीअभिनंदना आपके ५६वे जन्म दिवस पर शतशत वंदन .जय जय ज्योति चरणजय जय महाश्रमणसंघ पुरुष चिरायु हो‘जिस देश में गंगा बहती है’ उस देश के वासी होने का हमारा गर्वबोध उस समय चकनाचूर

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पाकिस्तान की करतूत

8 मई 2017
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जम्मू कश्मीर की कृष्णा घाटी से नियन्त्रण रेखा पार करने के लिए सीमा सुरक्षा दल के गश्ती दस्ते का ध्यान बटाने के लिए पहले मोर्टार से गोले गये उसकी आड़ में पाकिस्तान की बार्डर एक्शन टीम शहीद हुये दो सैनिकों के सिर काट कर ले गयी |शत विक्षत शव को अंतिम विदाई देते समय पूरा देश क

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मोत ....

12 मई 2017
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एक ऐसा विषय जिसकी कल्पना करना या आभास करने से ही मन विचलित हो जाता है कल रात ओमकार तीर्थ प्रणेता 108 आचार्य श्री सूर्यसागर जी का मुझे एक संदेश प्राप्त हुआ उत्तम जी तुम “मोत” इस विषय पर अपनी कलम द्वारा अपने विचारो की अभिव्यक्ति दो बड़ा जटिल विषय मुझे गुरुदेव ने दे दिया ! क्

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धर्म की पीड़ा

30 जुलाई 2017
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आज धर्म के नाम पर जो घिनौने काम किए जाते हैं, क्या उन्हें देखकर आपका दिल सहम जाता है? क्या ऐसे लोगों के बारे में सुनकर आपका खून खौल उठता है जो एक तरफ तो ईश्वर की भक्ति करने का दम भरते हैं, वहीं दूसरी तरफ वे युद्ध में हिस्सा लेते हैं, आतंकवादी हमले करते हैं और बड़े-बड़े घो

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में हु बबली ... एक स्त्री भाग 10

30 जुलाई 2017
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मैं हूँ बबली..............एक स्त्री...2 भाग-10प्रवीण धीरे-धीरे मेरी दुनिया बन रहा था। कहने को नहीं हकीकत में। उसके मम्मी-पापा मेरे पम्मी-पापा, उसका घर मेरा घर, उसकी सम्पत्ति मेरी सम्पत्ति, उसके रिश्तेदार एवं मित्र मेरे सगे सम्बंधी.............बस मैं धागे सी इस चटाई में ग

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धोखा ... एक लघु कथा

2 अगस्त 2017
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''चलो घर से भागकर शादी कर लेते हैं !''महेश के यह कहते ही संगीता का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा.भावनाओं और क्रोध दोनों को संयमित करते हुए संगीता कड़े शब्दों में बोली ''वाह ! महेश क्या यही तरीका है अपने सपनों को पूरा करने का ?अगर मेरे माता-पिता समाज के उलाहने सह भी लेंगे तो

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धोखा ... लघु कथा

3 अगस्त 2017
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https://goo.gl/hbbwrFधोखा ''-एक लघु कथा ''चलो घर से भागकर शादी कर लेते हैं !''महेश के यह कहते ही संगीता का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा.भावनाओं और क्रोध दोनों को संयमित करते हुए संगीता कड़े शब्दों में बोली ''वाह ! महेश क्या यही तरीका है अपने सपनों को पूरा करने का ?अगर मेरे माता-पिता समाज के उलाहने सह

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बदला ...लघु कथा

3 अगस्त 2017
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राजस्थान के एक छोटे से कस्बे जो उदयपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर भीमाली में रहने वाले घनश्याम की सुमन से नई-नई शादी हुई थी। नव-विवाहिता ने बड़े प्रेम और मनोयोग से पति के लिए भोजन तैयार किया था। पति की मनपसंद मेवों वाली खीर भी बनाई थी। पति के काम से लौटने में कुछ समय बाकी था इसलिए बगल के घर वाल

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बदला ... लघु कथा

4 अगस्त 2017
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लघु कथा ... (नाम ,स्थान काल्पनिक ) राजस्थान के एक छोटे से कस्बे जो उदयपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर भीमाली में रहने वाले घनश्याम की सुमन से नई-नई शादी हुई थी। नव-विवाहिता ने बड़े प्रेम और मनोयोग से पति के लिए भोजन तैयार किया था। पति की मनपसंद मेवों वाली खीर भी बनाई

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प्रेम .... जाल ( लघु कथा )

4 अगस्त 2017
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प्रेम .... जाल .... ( लघु कथा ) गुप्ता साहब की बिटिया अंजली बड़ी सुंदर थी पढ़ने मे भी काफी तेज थी गुप्ता साहब अपनी बिटिया अंजली के लिए एक अच्छा लड़का तलाश कर रहे थे एक दिन गुप्ता जी ने अंजली से कहा बेटा तेरे लिए एक लड़का देखा है वह इंजीनियर है अच्छे परिवार है अंजली ने तपाक

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१९९२ के बाद रेलवे बोर्ड में उठा सूरत की ट्रेन का मुद‌्दा

5 सितम्बर 2017
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सूरत.सूरत में पिछले चार महीनों में रेल संघर्ष समिति के दो बड़े आंदोलनों ने आखिरकार रेलवे बोर्ड का ध्यान उत्तर भारतीयों की समस्या की तरफ खींचा है। बोर्ड द्वारा निर्देशित पैसेंजर सर्विस कमेटी (पीएससी) ने 20 साल में पहली बार गंभीरता के साथ सूरत और आसपास में रहने वाले करीब 20

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लेखक की हत्या पर राजनीति ओर मीडिया की चुप्पी

8 सितम्बर 2017
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उत्तम जैन (विद्रोही ) ब्लॉग: लेखक की हत्या पर राजनीति ओर मीडिया की चुप्पी

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