मजदूरों के अन्तर्राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है - मजदूर दिवस पर शुभकामना
विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस “1 मई” के दिन मनाया जाता है। किसी भी देश की तरक्की उस देश के किसानों तथा कामगारों (मजदूर / कारीगर) पर निर्भर होती है। एक मकान को खड़ा करने और सहारा देने के लिये जिस तरह मजबूत “नीव” की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, ठीक वैसे ही किसी समाज, देश, उद्योग, संस्था, व्यवसाय को खड़ा करने के लिये कामगारों (कर्मचारीयों) की विशेष भूमिका होती है ! मजदूर वर्ग अंतर्राष्ट्रीय इतिहास में मील का पत्थर है इस कम्प्यूटर युग में मजदूर को मजदूरी के लाले पडे है। मजदूरों से ज्यादा से ज्यादा समय तक काम करवाना इनकी फितरत हो गई थी। मजदूरों से 16-16 घण्टे, 18-18 घण्टे तक काम करवाया जाता था। आराम नाम की चीज उन्हें हासिल नहीं थी। परिणामस्वरूप अधिकांश मजदूर बीमारी के शिकार होकर मृत्यु के शिकार हो जाते थे, परिवार की देखभाल के लिए भी समय नहीं मिलता था। आज मजदूर हर रोज सुबह शाम बढती महंगाई से परेशान है ऐसा नहीं की इस महगॅाई की मार सिर्फ में सिर्फ मजदूर ही आया है इस महगॉई रूपी ज्वालामुखी की तपिश में हर कोई झुलस रहा है छटपटा रहा है खाद्यान्न, सब्जी , फल, व तेलो के दाम हर समय आसमान छूते है खाने पीने की चीजों के दाम बेतहाशा बढ रहे है ऐसे में अगर 1 मई को मजदूर दिवस मनाये तो शाम को मजदूर के घर चूल्हा कैसे जले। आज मजदूर दिवस मात्र औपचारिकता बन कर रह गया। कल तक बडी बडी मिले थी, कल कारखाने थे, कल कारखानो एंव औधोगिक इकाईयों में मशीनो का शोर मचा रहता था मजदूर इन मशीनों के शोर में मस्त मौला होकर कभी गीत गाता तो कभी छन्द दोहे गुनगुनाता था। पर आज ये सारी मिले कल कारखाने मजदूरों की सूनी ऑखो और बुझे चूल्हों की तरह वीरान पडे है। जिन यूनियने के लिये मजदूरो ने सडको पर अपना लहू पानी की तरह बहाया था उन सारी यूनियने के झन्डे मजदूरो के बच्चो के कपडों की तरह तार तार हो चूके है। फिर भी 1 मई को हम लोग अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर ‘‘मजदूर दिवस ’’ का आयोजन करते है। इस दिन केन्द्र और राज्य सरकारो द्वारा मजदूरो के कल्याणार्थ अनेक योजनाये शुरू की जाती है पर आजादी के 70 साल बाद भी ये सारी योजनाये गरीब मजदूर को एक वक्त पेट भर रोटी नहीं दे सकी। आज इस कम्प्यूटर युग ने मशीनों की रफ्तार तो तेज कर दी परन्तु कल कारखानो और औधोगिक इकाईयो की रौनक छीन ली मजदूरो से भरी रहने वाली ये मिले कारखाने कम्प्यूटरीकृत होने से एक ओर जहॉ मजदूर बेरोजगार हो गया वही ये इकाईया बेरौनक हो गई। या यू कहा जाये की मजदूर के बगैर बिल्कुल विधवा सी लगती है। मजदूर आज भी मजदूर है चाहे कल उसने ताज महल बनाया हो ताज होटल बनाया हो या फिर संसद भवन,उसे आज भी सुबह उठने पर सब से पहले अपने बच्चो के लिये शाम की रोटी की फिक्र होती है