आचार्य श्री महाश्रमण जी के जन्मोत्सव व पटोत्सव पर खूब खूब अभिवंदना गुरुदेव के अवदान व सक्षिप्त जीवन परिचय----
प्रभु स्वीकारो म्हारी
अभिनंदना आपके ५६
वे जन्म दिवस पर शत
शत वंदन .
जय जय ज्योति चरण
जय जय महाश्रमण
संघ पुरुष चिरायु हो
‘जिस देश में गंगा बहती है’ उस देश के वासी होने का हमारा गर्वबोध उस समय चकनाचूर हो जाता है, जब हमारा अपने आसपास के परिवेश में आए दिन वैमनस्य, हिंसा, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, सांप्रदायिक उन्माद आदि की घटनाओं से वास्ता पड़ता है। भ्रष्टाचार, घृणा और नशाखोरी के जख्मों से त्रस्त हमारे देश और समाज में अहिंसा, नैतिकता, सद्भावना, सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की अलख जगाने के लिए देश व विदेश मे अहिंसा यात्रा द्वारा अलख जगाने वाले आचार्य महाश्रमण के जन्मोत्सव व पटोत्सव पर खूब खूब अभिवंदना---
भारत की गौरवशाली अध्यात्म परंपरा में श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ का अपना एक विशिष्ट स्थान है। इस धर्म संघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्य महाश्रमण अपने उपदेशों के आलोक से प्रतिदिन सैंकड़ों लोगों के जीवन के रूपांतरण का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ के मार्गदर्शन से आलोकित आपके व्यक्तित्व की आभा से समाज अभिभूत है। आपके उपदेंशो की ऊष्मा से हजारों लोगों के जीवन की दशा और दिशा परिवर्तित हुई है। ऐसे ऊर्जावान संत महायोगी महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी मानवता के लिए समर्पित जैन तेरापंथ के उज्जवल भविष्य है। अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी की उन्होंने अनन्य सेवा की। तुलसी-महाप्रज्ञ जैसे सक्षम महापुरूषों द्वारा वे तरासे गये है।वे अल्पभाषी है।९ सितंबर १९८९ को महाश्रमण पद पर आरूढ़ एवं जन्ममात प्रतिभा के धनी आचार्य महाश्रमण अपने चिंतन को निर्णय व परिणाम तक पहुंचाने में बडे सिद्धहस्त हैं। महाश्रमण उम्र से युवा है, उनकी सोच गंभीर है युक्ति पैनी है, दृष्टि सूक्ष्म है, चिंतन प्रोढ़ है तथा वे कठोर परिश्रमी है। उनकी प्रवचन शैली दिल को छूने वाली है। आचार्य श्री की प्रज्ञा एवं प्रशासनिक सूझबूझ बेजोड़ है। गौर वर्ण, आकर्षक मुखमंडल, सहज मुस्कान से परिपूर्ण बाह्म व्यक्तित्व एवं आंतरिक पवित्रता, विनम्रता, दृढ़ता, शालीनता व सहज जैसे गुणों से ओतः प्रोत आचार्य महाश्रमण से न केवल तेरापंथ अपितु पूरा धार्मिक जगत् आशा भरी नजरों से निहार रहा है और उनकी महानता को स्वीकार कर रहा है। तेरापंथ धर्म संघ के 11वे अधिशास्ता जिनका जीवन मानव मात्र के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गया।
जिनका विलक्षण व्यक्तित्व और ओजस्वी वाणी का प्रवाह निराशा मुक्ति का साधन बन गया। जिनका शांत आभामंडल दुःख और तमस के अंधियारो में उजाला बन गया।
उस महातपस्वी महामानव का संक्षिप्त जीवन परिचय:-
जन्म– राजस्थान के सरदारशहर में श्री झूमर मलजी और श्रीमती नेम देवी के यहाँ वेशाख शुक्ल 9 वि.स.2019 के दिन एक बालक का जन्म नाम रखा मोहन।
वैराग्य भाव:-तेरापंथ मनीषी मंत्री मुनि श्री सुमेरमल जी स्वामी का वि.स.2030 2031 का चातुर्मास सरदार शहर में बालक मोहन के लिए कठोती में गंगा सामान हुआ।
वि.स. 2030 भद्रव शुक्ल षष्ठी का दिन मुनि श्री सुमेरमल जी की प्रेरणा से नव दीप जला और आजीवन विवाह न करने का त्याग।
प्रतिक्रमण के आदेश के पश्चात आचार्य श्री तुलसी के निर्देशानुसार मुनि श्री सुमेरमल जी ने वैशाख शुक्ल 14वि.स.2031 को वैरागी मोहन और वैरागी हीरालाल की दीक्षा का आदेश।
दीक्षा-वैशाख शुक्ल 14 ( 5मई 1974) को सरदार शहर में गधेया जी के नोहरे में हजारो की उपस्थिति में मुनि श्री सुमेरमल जी ने दीक्षा प्रदान की। नाम रखा मुनि श्री मुदित कुमार।
गुरु दर्शन-सरदारशहर चातुर्मास की परिसम्पन्नता पर श्री डूंगरगढ़ में आचार्य श्री तुलसी के दीक्षा बाद प्रथम बार दर्शन ।
गुरु की सेवा का अवसर-वि.स. 2041 ज्येष्ठ शुक्ल 8 को लाडनू में गुरुदेव तुलसी ने पंचमी समिति की पात्री की जिम्मेदारी के साथ ही मुनि मुदित की गुरुदेव की व्यक्तिगत सेवा में नियुक्ति। लगभग 12वर्षो तक पात्री का ये सौभाग्य मुनि मुदित को मिला।
अन्तरंग सहयोगी:-वि.स.2041 माघ शुक्ल7 मर्यादा महोत्सव का सुअवसर उदयपुर के विशाल जन भेद्नी के समक्ष मुनि मुदित को युवाचार्य श्री महाप्रज्ञजी का अन्तरंग सहयोगी बनाया गया।
साझपति– वि.स.2043वैशाख शुक्ल 4 ब्यावर का तेरापंथ भवन में गुरुदेव तुलसी ने मुनि मुदित को साझपति बनाया।
महाश्रमण-वि.स.2046 भाद्रपद शुक्ल 9 योगक्षेम वर्ष का आयोजन लाडनू जैन विश्व भारती सुधर्मा सभा में आचार्य श्री तुलसी ने मुनि मुदित कुमारजी को महाश्रमण अलंकरण प्रदान किया।
अनोखा उपहार-वि.स.2047 मार्गशीष माह में सिवांची मालानी की यात्रा के बाद आचार्य श्री तुलसी ने अनोखा उपहार दिया जो महाश्रमण के समर्पण और तुलसी के विश्वास का रूप बना। गुरुदेव् ने फ़रमाया की “यदि कोई कह दे की मुनि मुदित सुविधावादी बन गए या मेरे ध्यान में कोई सुविधावादी प्रवर्ति आती हे तो मुनि मुदित को 3 घंटे खड़े खड़े स्वाध्याय करना होगा।” पर एसा कभी नहीं हुआ।
पुनः महाश्रमण पद-वि.स.2051 माघ शुक्ल 6 को देल्ही में आयोजित आचार्य श्री महाप्रज्ञ पदाभिषेक समारोह में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के अन्तरंग सहयोगी के रूप में पुनः महाश्रमण बनाया गया।
युवाचार्य पद-वि.स.2054 भद्रव शुक्ल 12 को चोपड़ा हाई स्कूल गंगाशहर के विशाल प्रागंण में अपार जनता के मध्य आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने मुनि श्री महाश्रमण को युवाचार्य पद पर शोभित किया।
महाश्रमिक महातपस्वी-10अगस्त2007 उदयपुर में युवाचार्य श्री की श्रम साधना और अनात्रंग तप का मूल्या्कन करते हुए आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने आपश्री को महाश्रमिक और महातपस्वी का संबोधन प्रदान किया। पूज्य प्रवर ने कहा “आज से लोग इन्हें युवा मनीषी कहे न कहे महातपस्वी महाश्रमण अवश्य कहे।”
आचार्य पद-9 मई 2010 सरदार शहर की पवित्र भूमि पर दोहपर को लगभग 2 बज का 10-12मिनिट पर तेरापंथ का दशम सूर्य अस्त हो गया। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की आत्मा इस लोक को छोड़ दुसरे लोक की यात्रा पर गतिमान हो गई।
भिक्षु शासन की मर्यादा के अनुसार एक आचार्य के दिवंगत होते ही स्वतः युवाचार्य आचार्य बन जाते है।
पदाभिषेक पर्व-23 मई2010 गाँधी विद्या मंदिर सरदारशहर के विशाल प्रांगन में चतुर्विध धर्म संघ ने अपने एकादश अधिशास्ता के पदाभिषेक पर्व वर्धापन समारोह आयोजित किया। जन्म दीक्षा और आचार्य पद एक ही भूमि पर सम्पादित हुए सरदारशहर की पावन भूमि।
आचार्य श्री महाश्रमण जी को पट्टासीन होने का अनुरोध करते हुए साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने कहा
“आहिस्ते से उठो आर्यवर! पट्टासीन बनो मंगल पल,
सविनय बद्धांजलि शुभसंशा,महाप्रज्ञ आसन हो अविचल।।”
पट्टासीन होने के पश्चात् वयोवृद्ध संत मुनि श्री सुमेरमल जी “सुदर्शन” ने दायित्व की प्रतिक पञ्च सवस्तिमय अमल धवल पचेवडी ओढ़ा कर आचार्य पदाभिषेक की महत्वपूर्ण विधि सम्पादित की ।
ज्ञान दर्शन चरित्र और तप-मोक्ष मार्ग के चरुंग धर्म की साधना में संलिग्न आचार्य श्री महाश्रमण जी के कुशल नेतृत्व में पवित्रता तेजस्विता गंभीरता निरंतर उचाईयो को और बढे यही मंगलकामना ।
उनका आशीर्वाद हमारे जीवन में सदा बना रहे स्वयं के प्रति भी यही मंगलकामना
लेखक – उत्तम जैन (विद्रोही )
संपादक – विद्रोही आवाज़