आगोमनी (असम) जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गोलकगंज से पन्द्रह किलोमीटर का विहार कर असम यात्रा के अंतिम पड़ाव स्थल अगोमनी पहुंचे। ब्लाक कार्यालय परिसर में बने प्रवचन स्थल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि मनुष्य अपने व्यवहार में माया का भी प्रयोग कर सकता है। माया के कारण आदमी झूठ का भी प्रयोग कर सकता है। माया और मृषा का जोड़ा है। उसी प्रकार सच्चाई और सरलता का भी जोड़ा होता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में सरलता और सच्चाई का प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। सच्चाई संसार का सारभूत तत्व है। सच्चाई के लिए आदमी के भीतर साहस का होना आवश्यक होता है। कई बार आदमी भय के कारण भी झूठ बोल सकता है। इसलिए सच्चाई के लिए आदमी को अभय बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी सोने से पहले प्रतिदिन अपने द्वारा बोले गए झूठ की समीक्षा करे और उसे अगले दिन कम झूठ बोलने का प्रयास करे तो जीवन में सच्चाई का समावेश हो सकेगा। सरलता भी जीवन में यदि बढ़ सके तो सच्चाई की अच्छी साधना हो सकती है। सच्चाई का रास्ता सुखद होता है। इसलिए यदि दुनिया में सच्चाई और ईमानदारी का राज्य हो जाए तो दुनिया सुखी बन सकती है।आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी से कालडब्बा और अगोमनी के तेरापंथी श्रद्धालुओं को अपने श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) प्रदान कर उन्हें देव, गुरु और धर्म के प्रति संपूर्ण जीवन श्रद्धाभाव रखने की प्रेरणा प्रदान की। वहीं उन्हें संवत्सरी का उपवास और शनिवार को सामायिक करने की भी प्रेरणा प्रदान की। अपनी धरा पर अपने आराध्य