मित्रो 10 दिन से पूरा देश कतार मे है पूरे 1 दिन नही 2 दिन नही 10 दिन हो गए आज भी बेंकों मे रुपए जमा करना ओर फिर निकालने के जुगाड़ मे लोगो को दमा की बीमारी हो गयी बिचारी आम जनता की साँसे फूल रही है ! वेसे हिंदुस्तानी जनता इतनी भोली है की कोई 10 व्यक्ति गधे को शेर व शेर को गधा बोल दे तो 10 से आगे सभी व्यक्ति हा मे हा मिलाते जाएंगे सत्य की तह तक जाने की जरूरत नही समझते ! ओर कुछ मेरे जेसे लोग बोलने की हिम्मत करते है तो उनकी आवाज अंध टोली दबा देती है ! दूसरों की बात क्या करू मे अपनी घरवाली ओर फेसबूक से मेरी बहन नीता राय के सामने बात करू तो वह भी अंध भक्ति मे मुझसे भीड़ जाती है ! मगर कल जब सूरत शहर की रिपोर्टिंग करने सुबह निकला सोचा आज घरवाली को भी साथ ले लू जिससे उसको भी हकीकत से वाकिफ करा सकु ! जब घर से महज 150 मीटर दूरी पर पहुंचा पत्नी को बोला एटीएम की कतार मे लगे लोगो की फोटो तू ही निकाल केमरा उसे दिया पूरे सूरत शहर के करीब 3 घंटे मे करीब 20 किलोमीटर मे 35 एटीएम पर आंखो से अंधभक्ति का चश्मा उतार कर देखा तो बैंकों में जमा अपने ही रुपये को निकालने में लोगों की सांसें फूल रही हैं। लोग सुबह 5 बजे एटीएम व बैंक के बाहर लाइन मे लगे है ! मित्रो बड़ा दर्द हुआ आजादी के 69 साल बाद भी मेरे देश का आम नागरिक इस तरह पीड़ित की खुद न चेन से सो पा रही है न जी पा रही है अब मुख्य धारा की तरफ आपको लेकर चलता हु मित्रो नमो ओर अंधभक्ति का चश्मा उतार कर घोर करना एक आंकड़े के अनुसार देश के 85 लोगों ने बैंकों के 87 हजार करोड़ रुपये हड़प रखे हैं। अचरज की बात यह कि इन डिफॉल्टर्स की सूची सार्वजनिक करने में भी सरकार के हाथ-पांव फूलते हैं। कार्रवाई की बात दूर है। विजय माल्या व ललित मोदी जैसे लोग आराम से अरबों पचाकर सात समंदर पार से कुटिल मुस्कान बिखेर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने आठ नवंबर को 500-1000 के पुराने नोटों को महज कागज का टुकड़ा बनाने का जो साहस दिखाया, वह ऐतिहासिक था लेकिन दुर्भाग्य कि साथ में कोई बैकअप प्लान नहीं था। परिणाम हुआ कि पूरे देश में आर्थिक आपातकाल जैसे हालात हो गये हैं। लोग अपने ही बैंक खाते से रुपये निकालने को दिन-दिन, रात-रात भर एटीएम के बाहर खड़े हैं। बैंकों में रेलमपेल है। हम अपने पैसे को कब, क्यों और कितना निकालें, यह सरकार निर्देशित कर रही है।क्या यही हमारा अधिकार है मे जानता हु अंधभक्त मेरे मित्रो को मेरे विचारो से जुलाब चालू हो जाएगा मगर दोस्तो / भाइयो / बहनो / सखियो ओर मेरे कट्टर दुश्मनों यही तो आर्थिक आपातकाल है। जनता के पैसे पर सरकार लगभग कब्जा करने के अंदाज में आये दिन दिशा-निर्देश जारी कर रही है। हर दिन नए नए आदेश जारी कर रही है क्यूकी उसके पहला फेसला ही गलत था अब खुद 56 इंच सीना धारी यह तो बोल नही सकते की हमारे इस निर्णय मे यह चूक हुई है क्यू की यह भी इज्जत का सवाल है ! ओर मेरे जेसे सटीक टिप्पणी करने वालो पर आपको पेट मे दर्द होने लगता है ! मित्रो हमारा संविधान जनकल्याणकारी भाव को समाहित किये हुए है। नोटबंदी के बाद से बैंकों व एटीएम के दर पर ठोकरें खा रहे वंचित व मध्यम वर्गीय लोगों को राष्ट्रप्रेम की घुट्टी पिलायी जा रही है। कहा जा रहा है, 50 दिन इंतजार करो लेकिन हकीकत है कि बैंकों व एटीएम के पुराने चक्र को वापस आने में कम से कम तीन महीने और लगेंगे। तब तक पूरा देश देशसेवा के नाम पर शासनीय अव्यवस्था व अराजकता झेलने को अभिशप्त रहेगा। प्रधानमंत्री कह रहे हैं, उन्हें मारने की साजिश हो रही है। मित्रो यह रिपोर्ट किसने दी उसे सार्वजनिक किया जाय ! शायद यह भावनात्मक ब्लैकमेलिंग से ज्यादा कुछ नहीं है। या यूं कहें पॉलिटकल थियेट्रिक्स। मान लिया, कभी कोई गलती हो गई लेकिन तत्काल सुधार तो हो। इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। बाजार पैसे की कमी से जूझ रहा है। दुकानदारों की बोहनी हुए कई दिन हो गए। अरे दूसरों की क्या बात करू मे खुद खुदरा व्यापार आयुर्वेद से जुड़ा हु आज सुबह से 2000 का व्यापार नही किया ओर अब भीख मांगकर गुजारा करने वालों तक पर आफत है। शेयर बाजार ढहा जा रहा है। जिनके पास 2000 के नोट हैं, उसे कोई दुकान वाला लेना नहीं चाहता। सब्जीवाला तो हाथ खड़े कर देता है। कुछ लोगों का काम तो डेडिट-डेबिट कार्ड पर चल रहा है लेकिन कितने लोगों के पास ये कार्ड हैं? मित्रो 25 करोड़ के देश में महज तीन करोड़ कार्ड हैं। सरकार यह समझ नहीं पा रही है या समझना नहीं चाहती है कि बड़ी मछलियां अब भी आराम और सुकून से हैं। ये तो अपना पैसा हिंदुस्तान में रखते ही नहीं हैं। पनामा लीक से भी शासन की आंखें नहीं खुल रही हैं। बैंकों में पूंजी प्रवाह बढ़ाने को या वित्तीय घाटा कम करने को कदम उठाये जाने जरूरी हैं लेकिन सरकार आमलोगों को परेशानी में न डाले। भारत में 30 से 40 फीसद पैसा हमेशा बिना टैक्स वाला ही रहेगा। इसका ख्याल रखा जाना चाहिए कि भारत की 30 फीसद आबादी अपने लिए किसी तरह दो जून की रोटी का जुगाड़ करती है। इन्हें टैक्स नेट में नहीं लाया जा सकता। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो नोटबंदी को छह लाख करोड़ रुपये का महाघोटाला बता चुके हैं। हालांकि मे उनका समर्थक नही फिर भी लेकिन उन्होंने जो सवाल उठाये हैं, उसका सरकार को जवाब देना ही चाहिए। अब सोने पर सर्जिकल स्ट्राइक की बात हो रही है। सोशल मीडिया पर ऐसे संदेश आम हैं कि सरकार आने वाले दिनों में घर में रखे सोने का भी हिसाब-किताब लेगी। ऐसा हुआ, तब क्या होगा? लगता है, प्रशासनिक तंत्र नकारा हो चुका है। तभी तो जब पूरा तंत्र सेठ-साहूकारों की अघोषित आय का पता लगाने में नाकामयाब रहा तो सरकारी चक्की में घुन के साथ भोलेभाले लोगों को भी पीस दिया गया। ओर यही मेरे मित्र / भाई / सखी / ओर बहने जो मेरा व मेरे विचारो का विरोध कर रहे है एक दिन आप खुद मेरे विचारो को स्वीकार करोगे …. तब खुद कहोगे विद्रोही hm अंधभक्ति के नशे मे थे ….. कोई भी मित्र मुझसे इस मुद्दे पर पीड़ा व सहमति व्हट्स अप no -8460783401 या कॉल पर कर सकता है
आपका अपना —
लेख क – उत्तम जैन (विद्रोही )
प्रधान संपादक – विद्रोही आवाज