शक्ति की प्रतीक , समानता का अधिकार,कमज़ोर, हर क्षेत्र में आगे इन सभी उपमाओं का प्रयोग समय -समय पर लोग महिलाओं के विवरण देने हेतु विशेषण की तरह प्रयोग करने लगे हैं. जो भी हो यह सत्य है कि आज ही नहीं पूर्व काल से ही महिलाएं किसी भी मायने में पुरुषों से कामजोर नहीं रही है. जिस तरह कोई भी इंसान गुलामी में गौण हो जाता है वह अपनी संस्कृति ही नहीं अपनी क़ाबलियत भी खोने लगता है उसी तरह अंततः लंबे समय के गुलामी के कारण से अपने यहाँ भी लोगों ने महिलाओं को कमजोर बना दिया. मानसिक रूप से भी और शारीरिक तथा आर्थिक रूप से भी पर आजादी जब मिली तो महिलाओं ने पुनः अपना कमाल दिखाना आरम्भ कर दिया और आज विशेषकर भारतीय महिलायें तो हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा चुकी है.जमीन से आसमान तक अपनी सफलता का परचम लहरा रही हैं , आज अपने परिश्रम के बल पर जो मुकाम हासिल किया है वह अभिनन्दनीय है . धैर्य ,कर्मठता ,अथक परिश्रम , बुलन्द इरादों से सर्वत्र सफलता अर्जित कर रही है ,कोई भी क्षेत्र हो शिक्षा जगत हो , खेल जगत हो ,कला क्षेत्र हो ,वि ज्ञान ं क्षेत्र हो या राजनीति क गलियारे हर ओर महिला अपने को उच्चतम शिखर पर पहुंचा रही है ,आज की नारी “लाज कि गुड़िया नहीं प्रत्युत पुरुष की सहयोगिनी ,जीवनसंगिनी के रूप में सफलता अर्जित कर रही है .कदम से कदम मिलाकर चलनेवाली नारी के मूलभूत गुण समाप्त नहीं हुए हैं घर ,परिवार ,समाज और देश के लिए समर्पित नारी के बिना यज्ञ भी पूर्ण नहीं होता !मध्यकाल में उसकी दयनीय स्थिति हो गयी थी घर की चारदीवारी में उसे रहना पड़ा ,इस कारण पुरुष से पिछड़ गयी थी .कुछ पुरुष के दुराचार के कारण उसे छिपाना पड़ा ,कैद सदृश जीवनयापन करना पड़ा, मज़बूरीवश .पुरुष के अत्याचारों से शिक्षा से भी वंचित होना पड़ा ,इसलिए भी पिछड़ गयी थी महिलायें ..प्राचीन काल में शक्तिस्वरूपा दुर्गा के रूप में अवतरित हुई थी और उनका अवतरण भी तब हुआ था जब उस समय के सारे पुरुष तक़रीबन हार मान चुके थे . नारी तो इस सृष्टि पर हर रूप में आयी है. वह धनदायिनी ,विद्यादायिनी और जीवनदायिनी है सनशीलता की प्रतिमूर्ति है . एक से एक बढ़कर नारियां इस भारत भूमि पर आयीं !लेकिन अब अपनी क्षमता से ,मेहनत से सफलता का स्वाद चख लिया है !पुनः शक्तिस्वरूपा के रूप में प्रतिष्ठित हो रही है. !
आज नारीयो ने देश के लिए हर क्षेत्र मे अदम्य उत्साह से कदम रखकर एक मिशाल कायम किया है . विरोध का सामना भी करना पड़ा लेकिन अविचल भाव से आगे बढ़ती गयीं. कदम रुके नहीं , थके नहीं. सभी क्षेत्रों में चुनौती दे रहीं हैं. कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमे महिलाये अपनी लोहा न मनवा रही है शिक्षा जगत हो , साहित्य का क्षेत्र हो ,. खेती हो जंगल में वन्य जंतु रक्षा का कार्य हो,सीमा पर दुश्मन के दांत खट्टे करने हो,अंतरिक्ष में परचम लहराना हो, ,एवरेस्ट की उंचाईयां नापना हो, ओलोम्पिक में धाक जमाना हो, बैंक चलाना हो, इंडस्ट्री सम्हालना हो, इंफ्रास्ट्रक्चर में कमाल दिखाना हो ,ट्रक चलना हो, या ट्रैन दौड़ाना हो कोई क्षेत्र नहीं बचा है हर क्षेत्र में अव्वल प्रमाणित कर रहीं हैं आज की महिलाये.......
लेख क - उत्तम जैन ( विद्रोही )
संपादक - विद्रोही आवाज
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