हमारे देश भारत की ‘सर्जिकल स्ट्राइक” की चोट सही जगह पर पड़ी है। इसको लेकर भले ही भ्रम हो कि 28-29 सितंबर की दरम्यानी रात हुई सैनिक कार्रवाई में कितने आतंकवादी मरे, लेकिन अब यह साफ है कि पाकिस्तान के सैन्य-खुफिया तंत्र और सियासत में इसकी वजह से अब तक हलचल मची है। भारत ने ‘सर्जिकल स्ट्राइक” का प्रमाण जारी करने की आवश्यकता नहीं समझी। मगर जिसे चोट पहुंचती है, उसे सबूत की जरूरत नहीं होती। पाकिस्तान के हुक्मरानों ने पहले चोट छिपाने की बहुत कोशिश की। लेकिन लंबे समय तक ऐसा करना संभव नहीं था। तो अब मुल्क के अंदर उनसे जवाब मांगे जा रहे हैं। ऐसे में खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल रिजवान अख्तर बनें। उनका कार्यकाल अभी 13 महीने बाकी है।अब कब हटा दिया जाये कह नही सकते आईएसआई पर दो नाकामियों का ठीकरा फूटा है। पहली तो यह कि उसने नियंत्रण रेखा के करीब दहशतगर्दों के शिविर बनाए, जिनकी जानकारी भारत के हाथ लग गई। फिर वह भारतीय जवाबी कार्रवाई की भनक नहीं लगा पाई। लेकिन ऐसा लगता नहीं कि बात रिजवान अख्तर की विदाई के साथ खत्म हो जाएगी। भारतीय कार्रवाई ने नवाज शरीफ सरकार और पाक सेना के बीच भी तनाव बढ़ा दिया है। यही हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है यह क्या रूप लेगा, इसके कुछ संकेत जल्द ही मिलेंगे, जब सेनाध्यक्ष जनरल राहील शरीफ की सेवानिवृत्ति का वक्त आएगा। हालांकि जनरल शरीफ ने अभी यही कहा है कि वे कार्यकाल विस्तार नहीं चाहते, लेकिन पाक में इतनी सहजता से सेना में नेतृत्व परिवर्तन नहीं होता। पूछा जा रहा है कि क्या भारतीय कार्रवाई ना रोक पाने की बदनामी के साथ वे विदा होंगे? या इसका दोष सरकार के माथे मढ़ेंगे? अगर पूर्व की बात करे तो 1999 में कारगिल की जंग में हार के बाद पाकिस्तान में अफरा-तफरी मची थी। परिणाम निर्वाचित सरकार के तख्तापलट के रूप में सामने आया। प्रधानमंत्री तब भी यही नवाज शरीफ नामक पिल्ला था जो तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल में हार की जिम्मेदारी लेने के बजाय तब देश की सत्ता ही हथिया ली थी। अब फिर वही इतिहास दोहराया जाएगा कोई शक की गुंजाइश नही है ! मोदी सरकार ने भारत की तरफ ये संदेश अपरोक्ष रूप भेज ही दिया है कि आतंकवादियों को पनाह देते हुए पाकिस्तान अमन-चैन के साथ नहीं रह सकता। जाहिर है, पाकिस्तान पर ऐसा दबाव बनाए रखने, बल्कि और बढ़ाने की जरूरत है। ऐसा संभव है, अगर अपने नेता राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर सियासी फायदा उठाने की होड़ ना करें। आवश्यकता यह है कि इस नाजुक वक्त पर सभी एक स्वर में बोलें। दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले कुछ दिनों में ऐसा नहीं हुआ। इससे भारतीय जनमानस में आक्रोश है। आशा है, सभी दलों के नेता इसके पैगाम को समझेंगे।अभी समझना भी जरूरी है ! अपने निहित राजनीति क स्वार्थ को त्याग सभी दलो को मातृ भूमि के लिए एक स्वर मे मोदी सरकार का साथ दे ! मुट्ठी भर पाकिस्तान फिर कभी सिर उठा के नही बोल पाएगा मुझे पूरा यकीन है ! अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान को बता दिया जाए कि जहां तक उसका सवाल है, कश्मीर कोई मसला ही नहीं है। जो भी सवाल है, वह भारत सरकार और कश्मीर के लोगों के बीच है। कश्मीर के मामले में पाकिस्तान थर्ड पार्टी है। उसका इससे कोई लेना-देना नहीं। यह सच है कि भारत में अपनी स्थिति को लेकर कश्मीरी लोग परेशान हैं और हमें अतीत के समझौतों और दोनों विधानों के अनुसार उनसे लगातार बात करते हुए समाधान खोजने की कोशिशें करनी चाहिए। मुझे नहीं लगता कि पाकिस्तान से बातचीत करने का कोई भी फायदा है। उस मुल्क के हुक्मरानों में हिंदुस्तान के लिए नफरत इतनी कूट-कूटकर भरी हुई है कि उनसे कोई भी उम्मीद नहीं की जा सकती। आज पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क बनकर रह गया है ! घर का कुत्ता घर का न घाट का जिसे यही नहीं पता कि वह क्या है और उसकी जड़ें कहां पर हैं। उसने अपने पड़ोसियों के लिए जो गड्ढे खोदे, धीरे-धीरे वह खुद उन्हीं गड्ढों में गिर रहा है। जिन्ना ने सपना देखा था कि पाकिस्तान भारत के अल्पसंख्यक मुस्लिमों का वतन बनेगा। यह सपना एक अरसा हुए खत्म हो चुका है। एक आधुनिक और सेकुलर राष्ट्र के बजाय वह फौज के झंडे तले पलने वाले एक ऐसे मुल्क के रूप में उभरकर सामने आया है, जिसके होने का कोई मकसद नहीं है और कोई वजह भी नहीं है। दुनिया के सभ्य मुल्कों के बीच आज पाकिस्तान का कोई भी मुकाम नहीं है। धीरे धीरे उसकी अहमियत बदनीयती सभी जानने लगे है ! आज पाकिस्तान धीरे-धीरे राजनीतिक अराजकता और आर्थिक बदहाली के दौर में प्रवेश करता रहा है ओर कर रहा है । पाकिस्तान को अब यह भलीभांति समझ लेना चाहिए कि भविष्य में उसने भारतीय ठिकानों या लोगों पर हमला करने की कोशिश की, तो उसे इसका दंड भी भुगतना होगा। वे दिन अब हवा हुए, जब भारत की ओर से उसकी नापाक हरकतों पर हम नरम रुख अख़्तियार कर देते थे और जिसके वे आदी हो चुके थे। अब क्यू हमारे पहले की बात पाकिस्तान शायद भूल गया कि भारत ने किस तरह 1971 में बांग्लादेश को उससे मुक्त कराया था, जिसमें पाकिस्तान के 93000 सैनिकों को भारतीय सेना के आगे समर्पण करना पड़ा था। वह यह भी भूल गया कि कैसे वर्ष 1984 में पाकिस्तानी हमलावरों को सियाचिन की दुर्गम चोटियों से खदेड़ा था। अब पीओके में आतंकी शिविरों पर इस ‘सर्जिकल स्ट्राइक” के बाद तो पाकिस्तान को यह एहसास हो ही जाना चाहिए कि भारतीय सेना किसी से कम नहीं है। सेना को बस राजनीतिक सत्ता-तंत्र से हरी झंडी मिलने का इंतजार रहता है, जिसका 1971 के बाद से अभाव नजर आ रहा था। लेकिन अब मोदी सरकार ने दिखाया है कि उसमें यह इच्छाशक्ति है। भारतीय तंत्र ने यह भी दिखाया है कि वह आधी रात को हमले की खुफिया योजना बनाकर उसे इस तरह अंजाम भी दे सकता है कि किसी को इसकी भनक भी ना लगे। इस बार मोदी सरकार दुनियाभर के सामने भारत के नजरिए को पेश करने के लिहाज से खासी सक्रिय रही। वेसे मे किसी राजनितिज्ञ या सरकार की तारीफ नही करता हु क्यू की एक पत्रकार का धर्म है अच्छाई व बुराई को आम जनता से अवगत कराये पर पहली बार इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,रक्षा मंत्री व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेश सचिव एस. जयशंकर समेत उनकी टीम के बाकी सदस्य भी बधाई के पात्र हैं ! सबसे ज्यादा बधाई के पात्र है हमारे जाबाज़ सेना के जवान जिन्होने आज पाक की पतलून ढीली कर दी ! ….. बधाई के पात्र है टांग खींचने वाले वे राजनीतिक दल व नेता जो मोदी जी की टांग खींचने मे लगे है क्यूकी जहा विरोध होता है वह आगे बढ्ने का अवसर मिलता है ओर कुछ करने का जज़्बा बढ़ता है …… जय हिन्द लेख क – उत्तम जैन (विद्रोही ).... ज्यादा पढ़े