सेना के सर्जिकल स्ट्राइक पर जब से राजनीति शुरू हुई उस विषय पर मंथन करने पर एक ही विचार मानस पटल पर आता है ! राजनीति की कोई जाती नही होती न असूल होते है ! सच को झूठ व झूठ को सच साबित करने मे या आक्षेप लगाना राजनीतिज्ञो के खून मे बसा हुआ है ! जब हमारे देश का हर नागरिक चिंतित हो हमारे सेना के जवान दुश्मनों से जंग लड़ रहे हो ! कल क्या होगा किसी को नही मालूम यही चिंतन बार बार मानस पटल पर केन्द्रित हो ! देश का हर नागरिक का खून खोला हुआ हो की इस बार दुश्मनों को उसकी ओकत बतानी है उस समय जरूरत होती है की सभी राजनेता चाहे पक्ष हो या विपक्ष या देश का हर नागरिक उनका मिशन यही होता है सरकार व जिम्मेदार अधिकारियों व सेना की होंसला अफजाई करे मगर अफसोस की आरोप प्रत्यारोप व सबूत मांगते लोगो को हम क्या कहे ! सेना के शिविर पर पाक-समर्थित आतंकियों के हमले में 19 भारतीय सैनिकों के शहीद हो जाने के बाद पूरे देश में ऐसा माहौल बन गया था कि इस बार पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया जाना चाहिए। गुस्से के इस माहौल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को यह भरोसा दिलाया था कि सैनिकों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी। प्रधानमंत्री ने जैसा कहा था, वैसा कर दिखाया। 28-29 सितंबर की दरम्यानी रात यानी उरी हमले के दस दिन बाद भारत का बहुप्रतीक्षित जवाब सामने आ गया। लगभग सौ सैनिकों ने नियंत्रण रेखा पार की और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकियों के लांच पैड पर धावा बोल दिया। भारतीय सैनिकों ने ऐसे सात-आठ ठिकानों को निशाना बनाया और करीब 35 या उससे अधिक आतंकियों और सात पाकिस्तानी सैनिकों के मारे जाने की तो पुख्ता खबरें हमे प्राप्त हुई । सर्जिकल स्ट्राइक की वीडियोग्राफी भी की गई है। पाक-अधिकृत कश्मीर में स्थित आतंकी अड्डों पर भारतीय सैन्य बलों की ‘सर्जिकल स्ट्राइक” पर जब देश में संतोष तथा अपनी सेना पर गर्व का भाव था, तब आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने आदतन राष्ट्रीय आम सहमति को भंग किया। चालाकी भरे लहजे में(जेसा अनुमन करते है ) उन्होंने सरकार से इसका सबूत जारी करने को कहा कि सचमुच ऐसी कार्रवाई हुई या नही । इसके बाद शक करने वाले लोग खासकर सोशल मीडिया पर खुलकर सामने आने लगे। हालांकि (संजय निरुपम को छोड़कर) कांग्रेस ने कार्रवाई होने की सच्चाई पर सवाल नहीं उठाया है, लेकिन उसने यह दलील जरूर पेश की है कि ऐसी कार्रवाई पहली बार नहीं हुई है। उसने 2011, 2013 और 2014 की वो तारीखें जारी की हैं, जब उसके मुताबिक भारतीय सुरक्षा बलों ने पाकिस्तानी सीमा के अंदर जाकर आतंकवादियों पर कार्रवाई की थी। जाहिर है कोशिश राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में खुद को अधिक (अथवा कम से कम भाजपा के समान) सख्त दिखाने की है। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह ने भी बयान दिया है कि ऐसी कार्रवाइया पूर्व में भी हुईं, लेकिन तब के राजनीतिक नेतृत्व ने उनकी जिम्मेदारी लेने का साहस नहीं दिखाया। अब ऐसा जज्बा दिखाया गया है और यह बहुत बड़ा अंतर है। साफ है नरेंद्र मोदी सरकार ने ऐसा करके पाकिस्तान और वहां पनाह लिए आतंकवादियों को एक बड़ा संदेश भेजा है। भविष्य में इसका ठोस नतीजा सामने आएगा। इसीलिए सबको पिछले हफ्ते हुई सैन्य कार्रवाई का स्वागत करना चाहिए । भारत की इस अप्रत्याशित और साहसिक सैन्य कार्रवाई की सभी राजनीतिक दलों ने सराहना की है। इससे यह एक बार फिर स्पष्ट हो रहा है कि राष्ट्रहित के मामलों में हमारे सभी राजनीतिक दल एक राय रखते हैं। पाक-अधिकृत कश्मीर में चल रहे भारत विरोधी आतंकी शिविरों की भारतीय सेना को बहुत पहले से जानकारी थी ! लेकिन अपने अनुशासन के कारण उसने कभी भी राजनीतिक नेतृत्व की अनुमति के बिना नियंत्रण रेखा पार करने की कोशिश नहीं की। इन शिविरों को बहुत पहले ही ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए था। सच तो यह है कि यह काम पाकिस्तान सरकार को अपने स्तर पर करना चाहिए था। चूंकि पाकिस्तान ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया, इसलिए भारत को यह काम करना पड़ा। आखिर आतंकवाद के ढांचे को नष्ट करना दोनों देशों की जिम्मेदारी है। ओर यह बात अलग है की सर्जिकल स्ट्राइक की हकीकत से इनकार करने की पाकिस्तान की अपनी मजबूरियां हो सकती हैं। पाकिस्तानी जनता की निगाहों में अपना रुतबा बनाए रखने की वहां के सत्ता तंत्र की विवशता को समझा जा सकता है। लेकिन अरविंद केजरीवाल या संजय निरुपम सरीखे नेताओं अथवा सोशल मीडिया पर संदेह फैला रहे लोगों का क्या मकसद या स्वार्थ है मेरी समझ से परे है अब यह सवाल देश की जनता जरूर पूछ सकती है ओर देश की जनता का कर्तव्य भी है उनसे यह सवाल पूछे । क्या उन्हें अपनी सेना पर भरोसा नहीं है? याद रहे कि सर्जिकल स्ट्राइक होने के बाद देश को उसकी जानकारी सैन्य कार्रवाइयों के महानिदेशक (डीजीएमओ) ने दी थी। उन पर शक उठाने वाले लोग क्या शत्रु देश के सहायक नहीं बन रहे हैं? राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए हुई सैन्य कार्रवाई को राजनीतिक विवादों में घसीटना पूरी तरह मेरी नजर मे बहुत बड़ा अपराध है। इस पर राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं है। हा एक बात यह भी है सर्जिकल स्ट्राइक के बाद अपने पोस्टर लगाने से भाजपा को भी बचना चाहिए था। इससे ये अनावश्यक धारणा बनी कि भाजपा इस कार्रवाई का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। लेकिन उसके पोस्टर इस कार्रवाई पर ही शक या विवाद खड़ा करने का बहाना नहीं हो सकता । ऐसा करने वाले लोग भारतीय जनमानस को आहत कर रहे हैं ! समय है इन सभी मानसिक रूप से विकृत राजनेता जो भारतीय जनता को गुमराह कर रहे है सिर्फ अपनी स्वार्थ परस्त राजनीति को त्यागे ! राष्ट्रहित व जनता की भावनाओ को समझते हुए मोदी जी के स्वर मे स्वर मिलाकर सेना का होंसला बढ़ाये ! ……. जय हिन्द