“मुक्तक”
मापनी- २१२२ २१२२ २२१२ २१२
जिंदगी को बिन बताए कैसे मचल जाऊँगा।
बंद हैं कमरे खुले बिन कैसे निकल जाऊँगा।
द्वार के बाहर तेरे कोई हाथ भी दिखता नहीं-
खोल दे आकर किवाड़ी कैसे फिसल जाऊँगा॥-१
मापनी- २२१२ २२१२ २२१२ २२१२
जाना कहाँ रहना कहाँ कोई किता चलता नहीं।
यह बाढ़ कैसी आ गई पानी भरा हिलता नहीं।
डूबा हुआ घर गिर रहा औ बह रहा है आदमी-
जीवन हुआ बदतर बहुत खोया पता मिलता नहीं॥-२
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी