शीर्षक -दीवार,भीत,दीवाल
"मुक्तक"
किधर बनी दीवार है खोद रहे क्यूँ भीत।
बहुत पुरानी नीव है, मिली जुली है रीत।
छत छप्पर चित एक सा, एक सरीखा सोच-
कलह सुलह सर्वत्र सम, घर साधक मनमीत।।
नई नई दीवार है, दरक न जाए भीत।
कौआ अपने ताव में, गाए कोयल गीत।
दोनों की अपनी अदा, रूप रंग कुल एक-
एक भुवन नभ एक है, इतर राग क्यों मीत।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी