"मुक्तक"
बादल कहता सुन सखे, मैं भी हूँ मजबूर।
दिया है तुमने जानकर, मुझे रोग नासूर।
अपनी सुविधा के लिए, करते क्यों उत्पात-
कुछ भी सड़ा गला रहें, करो प्लास्टिक दूर।।
मैं अंबुद विख्यात हूँ, बरसाने को नीर।
बोया जो वह काट लो, वापस करता पीर।
पर्यावरण सुधार अब, हरे पेड़ मत छेद-
व्यथित चाँद तारे व्यथित, व्यथितम गगन समीर।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी