"मुक्तक"
भाग्य बिना होते नहीं, साजन कोई कर्म।
कर्म कीजिये लगन से, यही भाग्य का मर्म।
क्या छोटा क्या है बड़ा, दें रोजी को मान-
लग जाओ प्रिय जान से, इसमें कैसी शर्म।।
सब नसीब का खेल है, चढ़ता पंगु पहाड़।
पत्थर जैसा फल लिए, खड़े डगर पर ताड़।
न छाया नहीं रस मधुर, न लकड़ी नहीं दाम-
नशा लिए बहका रहा, पीते हैं सब माड़।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी