“दोहा मुक्तक”
परिणय की बेला मधुर मधुर गीत संवाद।
शोभा वरमाला मधुर मधुर मेंहदी हाथ।
सप्तपदी सुर साधना फेरा जीवन चार-
नवदंपति लाली मधुर मधुर नगारा नाद॥-१
“मुक्तक” छंद मधुमालती मापनी
अहसान चित करते रहो।
पहचान बिन तरते रहो।
कोई पुकारे सड़क महीं-
सुनकर उसे भरते रहो॥-२
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी