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मुक्तक

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प्रशंसा कितनी भी करो,अपमान सोच समझ कर करो।लौट कर आता है वापस वही,चाहे तुम जो कुछ भी करो।।प्रशंसा भी एक ऋण है,अपमान भी एक ऋण ही।जो कुछ भी दोगे तुम,वही वापस आएगा ही।।घमंड मत करना कभी तुम,घमंड भी एक सागर

🌷🌷🌷 जब कोई अपना ही.........................बात करने का अंदाज़ बदल ले.............. तो औरों से क्या उम्मीद.....!!!🥀💔🥺🌿🌿🌿🌿🌷जब कोई अपना दूर चला जाता हैं,,,,,,🍁🤍तो बहुत तकलीफ होती हैं,,,,💔🌷

मन मस्तिष्क पर हो यदि,हावी हो अगर भावनाएं।जीत हार में बदल जाती है,हावी हो अगर भावनाएं।।भावनाओं की ऊंची उड़ान,यदि अपने में रखते हो।मत करो तुम झूठी शान यूं,यदि अपने में रखते हो।।भावनाएं न हावी होने दो,ब

कलयुग की ये दुनिया साहब,दूर दूर तक फैली दुनिया।पहचानना है मुश्किल साहब,दूर दूर तक फैली दुनिया।।कौन अपना है कौन पराया,कदर है किसको होती।सच में जो रिश्ते निभाता,कदर है किसको होती।।लोभ और दिखावे की दुनिय

खुश रहकर जियो जिंदगी,आने वाले कल का आज हम।जियो हर पल जिंदगी ऐसी,अनमोल जिंदगी का पल हम।।रोज सूरज ही नहीं ढलता,आते हैं रात के पल भी।अनमोल जिंदगी भी ढलती है,मिलते हैं चांद सितारे भी।।ऐ अनमोल जिंदगी रोज ह

किस्मत में क्या लिखा हुआ,एक पल के लिए मान लो।लेना है अगर फैसला तुमको,एक पल के लिए मान लो।।शायद किस्मत में ही नहीं,फैसला लेकर तो देखो।शायद किस्मत बदल जाए,फैसला लेकर तो देखो।।फैसला न लेना कमजोरी है,की क

सुकून आज ढूंढता है आदमी,फुर्सत के दो पल भी नहीं।कैसे मिलेगा सुकून उसको,राहत के दो पल भी नहीं।।सुकून पाने के लिए भी,आदमी को जरूरत वक़्त की।दरकार वक़्त की होती है,दरकार ही नहीं वक़्त की।।सुकून पाने के ल

मेला लगता हर क्षेत्र में,जहां भीड़ भाड़ होती।देखने सजी सजाई दुकानें,खरीदते बेचते भीड़ भाड़ होती।।लोग सजाते अपनी दुकानें,कहीं कपड़ों और खिलौनों की।कहीं चाट और हाट की देखो,मेले में उमड़े जनसैलाब की।।कही

आज के युग में तुम चाहे राधा हो प्रेम में वो आदर ना पाओगी कितना भी सच्चा रूहानी प्रेम हो तुम्हारा जिस्मानी इश्क से छली जाओगी तुम सच्चा दोस्त तलाश करोगी वो दिल्लगी करना चाहे पावन रिश्ता चाहोगी वो प्रे

प्रभु सुकून चाहिए उतना,की जिंदगी ये चल पाए।हैसियत चाहिए कि उतनी,भला औरों का हो जाए।।प्रभु रिश्तों में गहराई उतनी,जिंदगी की कसौटी समझ आए।सुकून दीजिए उतना की हमें,जिंदगी भी अपनी संभल जाए।।रिश्तों में सम

दूर गगन की छांव में,वहां कौन रहता है?।कहते हैं हम उसपार,वहां कौन रहता है?।।नज़र उठाता है पहाड़ी से,जहां तक नज़र है जाती।वहां कौन रहता है देखो,वहां पर जब नज़र घुमाती।।देखना और परखना उसको,देखना वहां कौन

शापित एक घर जहां,सब गायब हो जाता है।इंसान ही क्या उसका,अस्तित्व खत्म हो जाता है।।शापित एक घर जहां,सन्नाटा पसरा रहता है।जाने से कोई भी वहां,घबराता ही क्यों रहता है।।शापित एक घर जहां,सन्नाटे से घबराते ल

संगत का फर्क सीखो भाई,न हो कोई जग हंसाई।जैसे गर्म तवे पे बूंद पानी की,गायब हो जाती है भाई।।सागर में सीप की संगत,पानी की बूंद बने मोती।गिरे पानी कमल के पत्ते पे,बूंद पानी की चमके मोती।।संगत ऐसी फूलों क

मन से पवित्र रहोगे,सच बोलने की आदत होगी।ईश्वर के करीब रहोगे,ईश्वर की वासना होगी।।जिंदगी समझ में न आए,परमात्मा पे मोड़ देना।उस रब की बनाई दुनिया,उस रब पर मोड़ देना।।उस रब से कुछ मत मांगो,उसको पता तुम्ह

हम जिंदगी के सफ़र में,जब साथ लिए अपनों का।बढ़ते जा रहे हमारे कदम,जब साथ लिए अपनों का।।हम जिंदगी के सफ़र में,इम्तहानों से गुजरते गए।जिंदगी के किरदारों को,ऐसे हम निभाते चले गए।।हम जिंदगी के सफ़र में,हकद

तारों के नीचे ये धरती,धरती में वीरानी सी क्यों।उजड़ा चमन क्यों छा रहा,धरती में वीरानी सी क्यों।।रात घनेरी छाई ऐसी,सन्नाटे को चीरती हवाएं।जैसे चीखती हो आवाजें,सन्नाटे को चीरती हवाएं।।तारों के नीचे निशा

रोना नहीं कभी जिंदगी में,किसी वस्तु के लिए भी।रोना पड़े तो रोना अकेले में,दर्द समझ के तुम्हारा भी।।रोते हो क्यों उसके लिए,जो आसुओं के लायक नहीं।जो तुम्हारे लायक होगा तो,वह तुमको रोने देगा नहीं।।दुआएं

अधूरापन लिए जिंदगी,हमसफ़र के बिना कुछ नहीं।साथ होता है हरपल तो,कमी कुछ भी खलती नहीं।।अधूरापन लिए जिंदगी,खुद की औलाद न हो।औलाद का होना जरूरी,हमसफ़र का साथ भी हो।।अधूरापन लिए जिंदगी,ख्वाहिशें भी अधूरी ह

मीठा होता नदी का पानी,पीने योग्य सदा ही होता।झर झर बहता झरना भी,निर्मल पानी ही वो होता।।सागर कहता खारा हूं मैं,नदियों को समाहित करता।खारे सा क्यों हूं मैं,ये बात मैं नहीं जानता।।पोखर कहता क्यों आती,मु

जीवन रूपी नदी में प्रवाहित,उतार चढ़ाव होते भिन्न-भिन्न।तैरोगे धारा के विपरीत अगर,हो जाओगे तुम छिन्न- भिन्न।।जीवन है तो यूं एक ख्वाहिश,ख्वाहिशें ऐसी अधूरी भी होती।जिंदगी से जुड़ा है जीवन,तो ख्वाहिशें भ

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