विधान - २५ मात्रा १३ १२ पर यति यति से पूर्व वाचिक १२/लगा अंत में वाचिक २२/गागा क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त कुल चार चरण पर मुक्तक में तीसरा चरण का तुक विषम “छंद
मुक्तामणि मुक्तक”
अतिशय चतुर सुजान का छद्मी मन हर्षाया
मीठी बोली चटपटी सबका दिल उलझाया
पौरुष अपने आप में नरमी गरमी सहता
धागा धागा ऐठ है सूत सूत लहराया॥-१
ऋतु आती जाती रही खिला फूल मुरझाया
डाली-डाली ललक है कली-कली पर छाया
भँवरा गुंजन कर रहा उड़ा और मँडराया
बंद पंखुड़ी हो गयी आँख मूँद लहराया॥-२
मौसम तेरी राह में आकर के पछताया
पानी- पानी हो गया भीगा वस्त्र सुखाया
तेज धूप जलने लगी नैन बैन मतवाले
बरखा बदरी छा गई हवा संग लहराया॥-३
आहत सब होते रहे पा बबूल की छाया
काँटे चुभते ही गए पोर- पोर दरदाया
अनजानी सी राह में किसकी दानत कैसी
मरहम देखा हाथ में सुंदर मन लहराया।।-४
नेकी अपने आप में है बरगद की छाया
हानि लाभ देखे नहीं कलुषित होती माया
पात- पात में जान है राम नाम का दाना
सुमिरन की सौगात है जप तप मन लहराया।।-५
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी