“मुक्तक”
मुहब्बत मिली तो मुहब्बत जिया है, जिंदा खिलौना ही अर्पण किया है
लिखकर रखा जिसे हमने लहू से, इबारत को पढ़कर इबादत किया है
चलता रहा हूँ जिन कदमों पे अबतक, यूं न हिला पाँव थककर थमा हूँ
पिट्ठू लगाकर शक्ल ढोता रहा हूँ, अपने वजन से खिलाफत किया है॥
महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी