“मुक्तक”
पक्के इरादे हो तो घर मजबूत होता है।
अटूट रिश्ता अपनों में वशीभूत होता है।
अजेय हो जाती हैं यादें पृष्ट खुलने पर-
अजी गैरों से कब बैर फलीभूत होता है॥-१
अखंडित दीप जलता है दिन रात।
अपार स्नेह पनप जाय हो यदि बात।
गुमसुम से बैठे हो बरखुदार क्यों-
इंतजार आँख को तकते प्रिय तात॥-२
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी