“मुक्तक”
चलत निक लागे चंद्रमा, नचत निक लागे मोर।
गुंजन निक लागे भ्रमर अली, सु-सहज नयन चितचोर।
निक लागे फुलत कलियाँ, महकत झुरझुर बयार-
हिलत डुलत कटि काछनी, मलत बछवा कर लोर॥-१
अति प्रिय लाग बौर आम का, मदन महुआ रस बोर।
सूर्य प्रभात जिय लालिमा, मासे कार्तिक बरध ज़ोर।
भुन मटर चना की फोतरी, माघी मूली अचार-
निक लागे कचरस कोल्हू, मलकत ओस शशि भोर॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी