“मुक्तक”
रे मयूर केहि भांति मयूरी रंग बिना कस लाग खजूरी।
अपलक चितवत तोहिं अधूरी नर्तकप्रिय पति करे मजूरी।
रात दिवस सह आस लगाए नहिं मतवाली नैन चुराए-
तूँ अति सुंदर जतन जरूरी मिलन बिना की सुखी सबूरी॥
मधु शाला है मधुर मयूरी रंग बिना कस लाग खजूरी।
अपलक चितवत तोहिं अधूरी नर्तकप्रिय प्रति करे मजूरी।
रात दिवस सह आस लगाए नहिं मतवाली नैन चुराए-
तूँ अति सुंदर जतन जरूरी मिलन बिना कस सुखी सबूरी॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी