हैलो प्यारी
कैसी हो, मैं अच्छी हूं इतने दिनों बाद तुमसे मुलाकात वक्त मिला , क्या करू व्यस्त हो इतनी थी कि वक्त निकाल ही नहीं पाई , पर सोचा की त्यौहार के अभी सज रहे मेले ,तुम संग जी कुछ पल क्यों रहे तुम बिन अकेले,
वैसे तो सभी को जानकारी है आज नाग पंचमी का त्यौहार है
सावन का महिना शिवजी को अतिप्रिय माह है, और इस माह में महादेव के अति प्रिय नागों की पूजन का विधान है
नाग पंचमी में नागों और उनके नाथ भोलेनाथ की पूजा को जाती है,
कही पढ़ा था नागपंचमी को यहां सर्पों की पूजा के अलावा निभाई जाती है ये खास परंपरा-नागपंचमी त्योहार पर नाग की पूजा व गुड़ियों को पीटने की है प्रथा-यूपी के गांव व कस्बों में खासतौर पर यह परंपरा बखूबी निभाई जाती है
जिसमें कपड़े से निर्मित गुड़ियों को तालाब, नदियों व नहरों में रंग बिरंगे डंडों से पीटा जाता है
गुड़िया पीटने के पीछे का रहस्य ये माना जाता कि तक्षक वंश के नाग के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हुई और तक्षक वंश की चौथी पीढ़ी की कन्या का विवाह राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी के राजकुमार से हुई ये राज us कन्या निज अपनी दासी को बताया और राज़ को राज रखने को कहा पर वह स्त्री राज़ माने रख नही पाई और जब राजा को ये बात पता चली तो सभी स्त्रीयों को कोड़ों से पीटने की सजा का हुकुम दिया इस तरह उन स्त्रीयों को मृत्यु दण्ड मिला ये प्रथा कपड़े की गुड़िया को पीट कर आज भी निभाई जाती है
रिमझिम करती आती सुहानी सहर
हर तरफ नाग पंचमी के त्योहार को
चल रही लहर
दूध का भोग शिव नागों पर चढ़ रहा
सुहाना दिन खुशियों की खनक से सज रहा
नागों के नाथ भोलेनाथ
सावन की रिमझिम में होते आनंदित अपार
हरियाली खुशहाली का नज़ारा हर तरफ
प्रकृति का छलकता प्यार
खुशहाली की दस्तक देता
नाग पंचमी का त्यौहार
बागों झूलों की सजी कतार
सखियों संग खेले हर लड़की कजरी
रिमझिम की चल रही फुआर
कही सज रहा तमाशा और खेला
नाग पूजन का लग रहा मेला
आनंदित बेला खुशियों का त्यौहार
नागपंचमी लाई सावन की बौछार
तक्षक कन्या विवाह का राज़
कोई स्त्री राज़ ना रख पाई
गुड़िया पीट पीट कर सजा
आज भी पाई
रीत पुरानी आज भी जाती है यूं निभाई
भोलेनाथ अपनी कृपा सभी पर बरसाए
सभी के जीवन में खुशहाली छाए
धन धान्य लक्ष्मी से भरे सभी का भंडार
शुभकामनाएं सभी को सफलता और उन्नति लयेजिवन मे
नाग पंचमी का ये त्यौहार
कुछ शब्द उनके लिए जो
मानव जीवन तो जीते है
अपनों पर नाग बन डसते है
जो समझे अजीज
रखते दिल के करीब
उन पर ही करते वार
उगलते बखूबी ज़हर
बरसाते अपने बनकर
अपनो पर ही कहर
मानव रूप धरे नागों को मेरा सलाम
नागों से डरते थे अब तलक
मानव रूप नाग से मिलकर
डर हुआ खत्म किया डर ने तौबा
कर ली हमसे नागों से डर ने राम राम