डियर काव्यांक्षी
शुभ दोपहरी 🥰 कैसी हो प्यारी।
काव्यांक्षी पता है आज का विषय है जातीय हिंसा अब तुम ही बताओ क्या कहे इस बारे में हमारे समाज में हमेशा से उसी बात पर लड़ाई झगड़े और हिंसा होती आई है जिस के लिए हिंसा की कोई बात ना हो कभी औरतों की की प्रगति धर्म के नाम पर तो कभी जातीय हिंसा सबसे बड़ा धर्म इंसानियत का भूल कर बाकी सब याद है हर किसी को हद हैं मेरी तो समझ के बाहर ही है ये सब और न ही भारी भरकम शब्दों का उपयोग कर अपनी बात पेश कर सकती हूँ।
काव्यांक्षी जातीय हिंसा के बारे में जो ख्यालात रखती हूँ बस साधारण शब्दों मे बताना चाहूँगी
काव्यांक्षी
मेरी तो समझ से परे है जातीय हिंसा की बात
इंसानियत को समझें ज़रा ऐसे है ख्यालात
जो भूल बैठे है इंसानियत
बात बात पर देखे अपनी सहूलियत
जाति धर्म के नाम पर लोगों को बहकाए
स्वार्थ सिद्धि के लिए जातीय हिंसा की ज्वाला भड़काए
सत्ता रहे उनकी बरकरार
मानवता कुचल करते जातीय हिंसा के नाम पर
मासूमों का शिकार
ऊंच नीच की बनाते दीवार
करते हिंसा का प्रहार
छोटी जाति वालों को छुने से कतराते
अत्याचार मजलुमों पर करते जाते
कहाँ जाती है उनकी शान
जब किसी बेबस अबला की अस्मिता कुचल कर
रौंदे उसके अरमान
सच्ची जाति इंसानियत की भूल कर बन जाते कसाई
ये कैसी जातीय हिंसा की बीमारी अधर्मियों ने फैलायी
कोई कहे हिन्दू महान किसी की इस्लाम में है शान
कोई ऊंच नीच को रो रहा
मानवता हर कोई खो रहा
जातीय हिंसा से उजड़ रहा हिंदुस्तान
ये कैसी महानता विनाश से बने कैसे कोई महान्
जिस गुलशन को ईश्वर ने सजाया
इंसानियत की खुशबू से महकया
क्या ये वहीं है जहां
जातीय हिंसा में समझें जो अपनी शान
चलो काव्यांक्षी अब मुझें जाना होगा हां एक बात और कोई कितना भी बोल ले लिख ले ये बस बातों में शब्दों में सिमट कर रह जाना है किसी पर कहा कुछ असर होना है
इस बात का सदा ही रोना है
kavya