कोई हारा न हुआ
रौशनी का हमको एक इशारा न हुआ।
सच रहा साथ में लेकिन वो हमारा न हुआ।
अभ्र का आज मिला एक इशारा लेकिन
चाँदनी को खिलना फिर भी गवारा न हुआ।
चल पड़े एक समंदर को लिए आँखों में।
लोग जिनको अपना घर भी सहारा न हुआ।
पूछना चाहता हर शख्श सितारों से यहाँ।
जो मिला जीस्त में क्यों उसका गुजारा न हुआ।
रोज की है उलझन रोज कवायद उसकी।
फिर भी उसको अपनाता किनारा न हुआ।
दिल मे कोई शक नजरों में अँधेरा न रहा
चल पड़े साथ तो उनमें कोई हारा न हुआ।