आगाज़ होगा
चुप हैं सभी, मरे से लगते हैं।
चेहरे सभी, डरे से लगते हैं।
कल का नहीं, रहा भरोसा अब,
साहिल सभी, परे से लगते हैं।
जीवन लगे, सदा ही एकाकी।
साँसें डोर , टूटनी हैं बाकी।
दीप आस के, पर जले भी है,
राख में तपन, अभी है बाकी।
आकाश को, उठा लें ऊँचा हम ।
ले साथ , एक दूसरे का हम।
गट्ठर यथा, बँधे हुए हो सब,
कोई तोड़ दे, किस में है दम।
खिलने को हैं., उजास कणिकाएँ।
खिंचने को है, प्रकाश रेखाएँ।
सूरज अभी, बस अभी उगा है,
होगीं सभी दूर, राह की बाधाएँ।
रातें अँधेरी , गुजर भी जाएँगी।
दुख की घड़़ी ,बदल भी जाएगी।
आगाज़ होगा , फिर जिंदगी का,
धूप में वह , निखर भी जाएगी।।