बचपन के ठाँव
पचपन के पाँव चले बचपन के ठाँव हैं।
ढूँढ़ने वही बरगद उसकी घनी छाँव है।
जो नन्ही नन्ही गलियों की यादों के गाँव है।
पचपन के पाँव चले बचपन के ठाँव हैं...
जगह जगह कूप पनघट पानी वाव है।
ताल और तलैया का सबको जहाँ चाव है।
खेत खलिहान बाग पगडंडियों की बाट हैं।
छोटी सी बहती नदी और एक छोटी नाव है।
पचपन के पाँव चले बचपन के ठाँव हैं...
घर-घर आँगन में जहाँ तुलसी महकती है।
छोटी सी गौरैया इक फुदकती चहकती है।
नानी औ दादी की कहानियों के अनुभाव हैं।
लोगों में फ़कत जहाँ अपनेपन के भाव हैं।
पचपन के पाँव चले बचपन के ठाँव हैं...
गाँव जिसमें बसता गोकुल औ वृंदावन है।
हवा की सरसर से गुंजार अखिल वन है।
कूक-कूक कोयल करे आम्र अभिनंदन है।
बेबस हो चल पड़ते पचपन के पाँव हैं।
पचपन के पाँव चले बचपन के ठाँव हैं...
ढूँढ़ने वही बरगद उसकी घनी छाँव है।
पचपन के पाँव चले बचपन के ठाँव हैं...