बन जाना इक बच्चा
चारों ओर है दर्दो-ओ-मुश्किल।
फिर भी अच्छा अच्छा है।
खुशियों से गर जीना है। तो बन जाना इक बच्चा है।
उम्र बड़ी है अकल नही है।
लड़ते भिड़ते लोग यहाँ है।
मज़हब और धर्म के पीछे,
मानवता का जोग नही है।
बचपन ही तो दूर है इनसे,
बचपन ही देखो अच्छा है।
खुशियों से गर जीना है। तो बन जाना इक बच्चा है।
कोई मन में भेद नही है।
अंतर में कोई द्वेष नही है।
ऊँच नीच औ जात पात का
मन में कोई दोष नही है।
बच्चों में भगवान है कहते
बचपन का जीना अच्छा है।
खुशियों से गर जीना है। तो बन जाना इक बच्चा है।
फूलों की खुशबू है जिनमें
जो नयन सितारे है सबके
मन जिनका है अनघड़ माटी
सारे जग के हैं जो साथी।
जीवन की इस उहापोह को
दो पल तो भुलाना अच्छा है।
खुशियों से गर जीना है।तो बन जाना इक बच्चा है।
भाषा भी नहीं जिनकी अड़चन ।
और न अपना- बेगानापन
सीमाओं का भी बोध नही
मन जैसे पंछी पवन पानी
जीवन का ये भोलापन भी
कुछ पल जी लेना अच्छा है
खुशियों से गर जीना है।तो बन जाना इक बच्चा है।