कान्हा
कान्हा रे.......कान्हा , कान्हा रे.........रे कान्हा।
तुझ बिन जग ये बिराना, कान्हा रे .......कान्हा।
आते है मथुरा से गोकुल में, ले बचपन का बाना।
समय ठिठक कर ठहर गया, देखने रूप सुहाना।
आएगा जग-स्वामी देखो, बन कर नन्हा कान्हा।
बरखा हुई झमाझम देखो चमके बादल बिजली।
बूँदों ने रफ्तार बढ़ायी, गलियाँ बह बह निकलीं।
लहरें नाचें देखो उछल के यमुना बढ़ बढ़ आयी।
स्वागत में आतुर यमुना बाढ़िल होकर उफनाई।
आयेगा वो स्याम सलोना मथुरा से नन्हा कान्हा।1।
आएगा जग-स्वामी....।
आयेंगे कब वासुदेव जी बाट जोहते पलपल को।
कब देखेंगी नीरद आँखें बाल स्वरूप चंचल को।
सदियों से हर आहट जीतीं आँखें रीती की रीती।
कैसे गुजरे दिन औ रातें आँखें इंतजार को जीतीं।
भेद खुशी का उनकी न जाने कोई जाने कान्हा।2।
आएगा जग-स्वामी....।
छूकर हरि के चरण कमल यमुना तब उतराएगी।
मेघों की झलाकरी भी मुख देख शांत हो जाएगी।
गुजरेंगे जब वासुदेव जी जग खुशियों को धारेगा।
श्याम रूप में आकर ईश्वर जग का भार उतारेगा।
नंद-यशोदा के घर अमृत बरसाएगा नन्हा कान्हा।3।
आएगा जग-स्वामी....।
कान्हा रे.......कान्हा , कान्हा रे.........रे कान्हा।
तुझ बिन जग ये बिराना, कान्हा रे .......कान्हा।